सुरेश सर्वेद
दहलीज पर कदम धरते ही गोमती
ने कुलेन्द्र की मां मालती से कहा - बुआ, आप कुलेन्द्र का विवाह कर ही
डालो । समय खराब चल रहा है पता नहीं कब उसकी कदम भटक जाये ?
मालती
चांवल साफ कर रही थी । उसके हाथ से गोमती ने सूपे ले लिया । सूपे पर हाथ
चलाती बोली - इस उम्र में आंखें गढ़ाकर काम करो यह मुझे पसंद नहीं ।
मालती
ने गोमती पर स्नेह की द्य्ष्टि डाली । कहा - सच कहूं बहू, मैं तुम्हारी ही
तरह बहू चाहती हूं । ऐसी बहू जो आते ही चौंका सम्हाल ले । मुझे आभास न
होने दे कि मैं सास हूं । वह मुझे मां ही माने, सिर्फ मां । कहते - कहते
मालती की आंखों में चमक आ गई ।
गोमती ने कहा - बुआ, मैं एक ऐसी ही बहू दिलाऊंगी . . . . ।
मालती जानती थी । गोमती यही कहेगी । गोमती ने आगे कहा - मगर एक समस्या है ?
- समस्या . . . कैसी समस्या ?
-
वे लोग दहेज नहीं दे सकते । वैसे मैं जिस लड़की की बात कर रही हूं । उसका
नाम कुमुदनी है ।गृह कार्य में दक्ष, रुप रंग में सुन्दर, ग्यारहवीं तक पढ़ी
है । पढ़ - लिखकर भी आधुनिकता से परहेज करती है । अभी तीज में गई थी तो
कुमुदनी के पिता रामेश्वर से मैंने कुलेन्द्र के विषय में चर्चा चलायी ।वे
कुमुदनी का विवाह कुलेन्द्र से करने तैयार है ।
- बहू,एक बात तुम
भी गांठ मे बांध लो । हमें दहेज नहीं, सुन्दर, सुशील, गृहकार्य में निपुण
बहू चाहिए । कुमुदनी के बारे में मैं आज ही कुलेन्द्र के पिता से बात
करुंगी . . . . ।
संध्या को कुलेन्द्र के पिता अवध आये। खाने पीने
से निपटने में रात हो गई थी । मालती ने जल्दी - जल्दी चौका का काम निपटाया
।अवध के पास आयी ।उसने खाट पर बैठते हुए कहा - सो गये क्या ?
- नहीं
तो, आज बहुत जल्दी काम निपटा आयी, क्या विचार है . . . ? कहते हुए अवध उठ
बैठे ।अपना हाथ मालती की ओर बढ़ाया ।उसके हाथों ने मालती के गाल का स्पर्श
किया । एक बार मालती शर्म से लाल हो गयी ।अवध का हाथ आगे बढ़ता इसके पूर्व
उसे परे ढकेलते हुए कहा - दो शब्द प्रेम के बोल क्या बोले । तैयार हो जाते
हो अपने में समेटने । कभी अपनी उम्र का भी ख्याल किया करो ।
अवध के होठों पर मुस्कान तैर आयी । कहा - अच्छा, तुम क्या कहना चाहती हो, कहो ।
-
बहू गोमती आयी थी ।बता रही थी, उसके मायका में एक लड़की है - कुमुदनी ।
उसके माता - पिता कुलेन्द्र के साथ कुमुदनी को भंवरा देने तैयार है ।
- अच्छा, तो बात यह है । मैं और कुलेन्द्र कल ही चले जाते हैं कुमुदनी के घर ।
दूसरे
ही दिन अवध कुलेन्द्र के साथ कुमुदनी को देखने चले गये ।उन्होंने लड़की
देखी । लड़का - लड़की भी एक - दूसरे को पसंद कर लिए ।फलदान के साथ विवाह का
मुहूर्त भी निकाल लिया गया ।
नियत दिन से विवाह कार्यक्रम प्रारंभ हुए और कुमुदनी ससुराल चली गयी ।
नयी
- नवेली बहू सबकी चहेती होती है ।जैसे - जैसे पुरानी होती जाती है उसकी
आदतें व व्यवहार सामने आता जाता है । फिर वह किसी की चहेती बन जाती है तो
किसी का दुश्मन, मगर कुमुदनी को ससुराल आये दो वर्ष बीत गये मगर उसने अपने
आदत व्यवहार से किसी को नाराज होने का अवसर ही नहीं दिया ।इसी बीच
कुलेन्द्र की नौकरी भी लग गई । उसकी नियुक्ति लिपिक के पद पर हुई थी । शहर
में उसे नौकरी करनी पड़ती थी और शहर गांव से पचास किलोमीटर की दूरी पर स्थित
था । प्रतिदिन आना - जाना संभव नहीं था । अतः वहीं किराया का मकान लेकर
रहता था । वह आठ पन्द्रह दिनों में गांव आया करता था ।
ग्यारह बजे
उसे आफिस जाना होता और लौटने का समय निश्चित नहीं था । वह कुमुदनी को अपने
साथ शहर ले आना चाहता था । उसने अपनी बात कुमुदनी के समक्ष रखी । कुमुदनी
ने कहा - आप कैसी बातें करते हैं, मां की तबीयत अक्सर खराब रहती है ।
बाबूजी कुछ कर नहीं सकते । अगर मैं यहां नहीं रहूंगी तो इनको समय पर कौन
खाना देगा ।
- और मुझे वहां तकलीफ उठाना पड़ता है उसका क्या ?
- हम अभी तकलीफ झेल सकते हैं, मगर ये तो बूढ़े हो चुके हैं । अपना शरीर भी इनसे सम्हाला नहीं जाता ।
कुमुदनी ने बात टालने की कोशिश की मगर कुलेन्द्र नहीं माना और आखिरकार कुमुदनी को कुलेन्द्र के साथ शहर जाना ही पड़ा ।
पूरे
तीन वर्ष बीत गये मगर न कुलेन्द्र स्वयं गांव गया और न ही कुमुदनी को गांव
जाने दिया । जब कुलेन्द्र का पुत्र हुआ तो उसने मां बाबूजी को पत्र अवश्य
लिखा था कि आपका नाती आया है । आप लोग अपने नाती को देखने आओ । पत्र के
जवाब में उसके बाबूजी का पत्र आया था कि इन दिनों मालती की तबीयत खराब चल
रही है । तुम लोग यहां आ जाओ ।
कुलेन्द्र ने बाबूजी का पत्र आया
इसकी जानकारी भी उसने अपनी पत्नी कुमुदनी को नहीं दिया ।कुछ दिनों तक पत्र
व्यवहार चलता रहा उसके बाद अवध का तो पत्र आता मगर कुलेन्द्र पत्र देना बंद
कर दिया । जब कुमुदनी पूछती तो कह देता - उसने पत्र भेजा है । पुत्र के
पत्र आना बंद होने के कारण अवध और मालती समझने लगे कि यह सब कुमुदनी के
कारण हो रहा है मगर सच्चाई और कुछ थी ।
काफी दिन निकलने के बाद भी
कुलेन्द्र ने जब गांव जाने का नाम नहीं लिया तो कुमुदनी एक दिन जिद्द पर अड़
गयी । बोली - मैं तुमसे जब भी गांव जाने कहती हूं , तुम बहाना बना देते हो
। तुम यहीं रहो । मैं मुन्ना को लेकर कुछ दिनों के लिए गांव जाऊंगी । इधर
अवध पत्र लिख - लिखकर बहू बेटे को बुला बुलाकर थक गया था । जब एक दिन फिर
मालती ने कहा तो अवध भड़क उठा - तुम बहू - बहू की रट लगायी रहती हो और
तुम्हारी बहू के कारण पुत्र ने गांव आना तो क्या पत्र लिखना भी छोड़ दिया ।
यह सब उसी का सिखाया धराया है वरना हमारा कुलेन्द्र ऐसा कहां था ।अब तुम
अपने दिमाग से बेटा बहू का नाम निकाल दो और यदि नहीं निकलता तो कल गाड़ी में
बिठा देता हूं, तुम वहीं चली जाओ । जब लताड़ पड़ेगी तब बुद्धि ठिकाने आयेगी ।
आजकल की बहुंए परिवार को जोड़ती नहीं, तोड़ती हैं ।
कुमुदनी की जिद्द
के सामने कुलेन्द्र को झुकना ही पड़ा । वे गांव आये । बातों ही बातों में
सच्चाई खुली कि सारी गलती पुत्र की है न की बहू की तो अवध का सीना गर्व से
तन गया । उसके मन में कुमुदनी के प्रति जो दुर्भावना जगी थी वह खत्म हो गई ।
वह मन ही मन बड़बड़ा उठा - कुछ बहुएं ऐसी भी होती है जो घर को जोड़ती है
।परिवार में सामंजस्य स्थापित करती है ।
मालती जो दिन रात खाट में
पड़ी रहती वह उठकर कुमुदनी के साथ काम में हाथ बंटाने का प्रयास करने लगी ।
कुमुदनी ने साफ शब्दों में मना करते हुए कहा - अब आपका आराम करने का दिन है
।
कुमुदनी के ही कहने पर कुलेन्द्र ने अपना तबादला गांव के ही पास
शहर में करवा लिया और अब वह गांव से ही आना जाना कर नौकरी करने लगा ।
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