-कश खींचकर धुआं
उड़ाओ. खो-खो करो . मेरी नींद खराब हो,यह मुझे जरा भी पसंद नहीं. बुढ़ऊ,मेरी
सलाह मान धुआं उड़ाना छोड़ खुद शान्ति से सोओ और मुझे भी चैन की नींद सोने दो।''
रामदीन
का माथा चकरा गया फूट भर का छोकरा,उसके द्वारा ऐसी हिदायत ? उसने सोचा भी
नहीं था - सड़क का यह नटखट,सिर चढ़कर बोलेगा. तिलमिला कर उसने कहा-धुआं उड़ा रहा
हूं तो अपनी कमाई का. तुम पर दया मरा इसका मतलब यह नहीं कि तुम मुझे समझाओ
?''
-बुढ़ऊ,मैं तुम्हारे हित की बात कर रहा हूं, धुंआ तुम्हारे जीने के दिनों में बढ़ोतरी नहीं कटौती ही करेगी।''
-मेरे जीवन से तुम्हें क्या ? एक दिन जिऊं या एक हजार साल ?''
-तुम्हारे जीने - मरने से मुझे क्या ? पर मेरा तो ख्याल करो, धुआं और खांसी - खोखली मेरी नींद खराब कर रही है।''
-चुपचाप आंख बंद कर सो जा नहीं तो धक्का मार कर बाहर कर दूंगा।''
-तुमसे
और क्या उम्मीद की जा सकती है. मैंने पहले ही मना किया - बुढ़ऊ,मुझे अपने साथ
मत ले चलो,परेशानी में पड़ोगे पर बन गये थे न मेरे हितैषी. अब अपने कर्मों
का सुनो भाषण ।''
रामदीन को लगा वास्तव में उससे भूल हुई. इस शैतान को
तो फूटपाथ में ही मरने देना था. कड़ाके की सर्दी जब शरीर में घुसती तब नानी
याद आ जाती. चपर - चपर चल रहा मुंह नहीं चलता। ठण्ड से शरीर ठिठूरता और
दांत किटकिटाता।
रामदीन ने एक कश खींच कर फिर धुआं फूंका। बालक ने नाक भौं सिकोड़ा. कहा - तुम पर मेरी बात का जरा भी असर नहीं हुई ''
-तुम सो क्यों नहीं जाते ?''
-तुम सोने दोगे तब न ? धुएं से आंख जल रही है और खांसी से नींद उड़ रही है।''
रामदीन
जितना अपने आपको समझा रहा था। बालक उसे उतना ही गुस्सा करने उकसा रहा था।
उसने कहा - तू चुपचाप सो जा नहीं तो तुम्हें धक्का देकर घर से निकाल दूंगा या
फिर मैं खुद निकल जाऊंगा।''
बालक को हंसी आ गयी। उसको हंसते देख
रामदीन का क्रोध फनफना गया। वह गुस्से से बालक की ओर देखने लगा। बालक की
हंसी थमी नहीं। वह लगातार हांसे जा रहा था। उसकी लगातार हंसी से रामदीन
झेंप सा गया। उसने पूछा- क्यों रे, मैंने ऐसा क्या कह दिया कि बत्तीसी
दिखाने लगा ''
बालक ने हंसते हुए कहा - बुढ़ऊं,तुम मुझे बाहर निकालने की
धमकी दे रहे हो। मैं तो बाहर निकलूंगा नहीं।. रही बात तुम्हारी,तो शौक से
बाहर का दरवाजा खोले देता हूं. . . ।''
रामदीन तैश में आ गया - दरवाजा
तुम्हें खोलने की जरुरत नहीं , मैं चला जाता हूं ।'' रामदीन दरवाजे की ओर
बढ़ने लगा। बालक ने कहा - सड़क में रात काटने का मन है तो जाओ काटो,मुझे परवाह
नहीं पर याद रखो बाहर की ठण्ड तुम्हें बर्फ के समान जमा देगी। अब तुम्हारे
शरीर में वह क्षमता नहीं कि बाहर का ठण्ड सह सको. संभव है - कल तुम्हारा
शरीर अकड़े पड़े मिले और मुझे तुम्हारे अन्तिम संस्कार की व्यवस्था करनी पड़े ।''
रामदीन का पैर रुक गया। बाहर पड़ रही सर्दी का अंदाजा वह बंद कमरे
में ही लगा लिया था। गर्म कपड़ा पहनने के बाद भी उसे ठण्ड सा लग रहा था।
रामदीन वापस अपनी जगह पर आ गया। बालक ने कहा - क्यों बुढ़ऊं,साहस जवाब दे
गया ? देगा भी क्यों नहीं। कभी आकाश तले जीना सीखे ही नहीं हो ''
रामदीन
चुप रहा। वह चाह रहा था - बालक मुंह बंद करे। चुपचाप सो जाएं। बालक चाह रहा
था - बुढ़ऊं कश खींचना बंद करे। धुंआ उड़ना बंद हो और उसकी खांसी - खोखली रुक
जाएं ताकि वह शान्ति की नींद सो सके। स्थिति विपरीत थी। न रामदीन चोंगा छोड़
पा रहा था न ही बालक अपना मुह बंद कर पा रहा था।
रामदीन ने विचार
भी नहीं किया था कि जिस बालक को सड़क से उठाकर ले जा रहा है , वह उसका सिर दर्द
बन जाएगा। उसे अकेला सड़क पर भटकते देखा। उसे दया आ गयी। वह दयावान बन गया।
रामदीन उसे रात भर अपने घर में पनह देने की नियत से ले आया था। उसे क्या
पता था कि जिसे वह उठाकर ले जा रहा है, वह ताना दे दे कर उसकी शान्ति में खलल
पैदा कर देगा। उसकी स्वतंत्रता पर पाबंद लगायेंगा। उसके जीवन में ऐसा एक भी
अवसर नहीं आया था कि उसके कार्यप्रणाली पर अवरोध हो। मगर यह बालक तो न
सिर्फ अवरोध पैदा कर रहा था अपितु चोंगा पीने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा रहा
था।
रामदीन वापस अपने चारपाई में आ चुका था। उसने बालक की ओर देखा , कहा- क्यों रे , तुम्हें खूब हंसी आ रही है ?''
-हंसी
आयेगी भी क्यों नहीं ? कभी खुले आकाश तले सपने में भी जीये हो ? सड़क की
जिन्दगी कभी जिए होते तो गुमान कर सकते थे पर सदैव चारदीवारी का जीवनयापन
कर कड़कती ठण्ड में सड़क की जिन्दगी जीने की बात करोगे तो हंसी नहीं आयेंगी
तो और क्या आयेगी ?''
-हां - हां,मैं तुम्हें खूब समझ गया,तुम्हें सड़क पर ही मरने देना था।''
-तुम
गलत हो. जिस सड़क पर मेरी अवस्था बढ़ी. वहां मृत्यु कैसे ! बुढ़ऊ मैं तो
बचपने से अब तक सड़क पर ही जीवन जीया है. ठण्ड,गर्मी,बरसात सबमें....। ''
-ठीक है ठीक है,सुबह मेरी आंख खुलने से पहले अपना मुंह लेकर चला जाना।''
-बुढ़ऊं,यदि
मेरी बात बुरी लगी हो तो क्षमा चाहता हूं मगर तुम्हें चोंगा बंद करवाकर
मैं तुम्हारा ही हित करना चाहता हूं ।'' बालक उठ खड़ा हुआ। वह दरवाजे की ओर
बढ़ने लगा। रामदीन ने कहा - तुम कहां चले !''
-जहां मेरा जीवन है वहां जा रहा हूं ।''
-अब
चपर करेगा तो एक थप्पड़ लगाऊंगा। मैने तुम्हें सुबह नौ दो ग्यारह होने कहा
है, न कि अभी। अब तुम कहते हो न कि मैं चोंगा बंद कर दूं तो लो मैं बंद कर
दिया। रात भर इसे हाथ भी लगाया तो चोंगा की कसम ?''
रामदीन की भावना
वह बालक पढ़ गया। रामदीन ने चोंगा पीना बंद कर दिया और बालक ने बोलना। बालक
यह अच्छी तरह समझ चुका था कि रामदीन अभी तो सुबह से ही भाग जाने कह रहा है
मगर सुबह कुछ और कहेगा। वह अब सचमुच सो जाना चाहता था। रात गहरा चुकी थी।
बाहर ठण्ड बढ़ती जा रही थी। वह अनुभव कर रहा था - बाहर कितनी ठण्ड पड़ रही होगी
उसे। हालांकि रामदीन ने चोंगा पीना बंद कर दिया था पर उसकी नीयत बार - बार
चोंगे की ओर जा रही थी। पर वह चोंगा सिपचा नहीं पा रहा था। दोनों की आंखें
कब लगी, दोनों समझ नहीं पाएं।''
सुबह आंख खुलते ही रामदीन का ध्यान
जिधर बालक सोया था उधर ही गया। उसने देखा - बालक बिस्तर से गोल है। रामदीन
हड़बड़ा गया। रामदीन की नजर दरवाजे की ओर दौड़ी। दरवाजा खुला था । रामदीन
दरवाजे के पास आया। बाहर देखा बालक नजर नहीं आया। रामदीन का मन बेचैन हो
गया। उसकी आंखें इधर - उधर दौड़ने लगी। बालक दूर - दूर तक दिखाई नहीं दिया। वह
अपने को धिक्कारने लगा कि उसने रात में बालक से क्यों कहा कि वह सुबह चले
जाएं। अचानक उसने देखा - बालक सामने से चला आ रहा है। रामदीन अपने को रोक
नहीं पाया। वह बालक की ओर लपका। पूछा- कहां चला गया था।''
-इतनी बेचैनी क्यों ? मैं कहीं जाऊं....।''
-अच्छा. . . . ।''
- और नहीं तो क्या ? मगर तुम्हें बताऐ बिना जाना मैंने उचित नहीं समझा इसलिए वापिस आ गया।''
-तो मुझे बताने ही आए हो।''.
-हां,मैं बताने ही आया हूं. . . . ।'
बालक जाने उद्धत हुआ. रामदीन ने कहा-ऐ बालक. . . ।'' बालक रुक गया। रामदीन ने कहा - कहां जाएगा !''
बालक की फिर हंसी छूट गयी। रामदीन को कुछ समझ नहीं आया। पूछा - अब हंसने का मतलब. . . . ?''
-हंसूंगा नहीं तो और क्या करुंगा. . तुम्हारा प्रश्न ही हंसी के लायक है।''
-हंसी के लायक. . . ?''
-और
नहीं तो क्या ? सूर्य उगने से पहले नहीं सोचता कि उसके किरणें कहां कहां
बिखरेंगे। हवा चलने से पहले नहीं सोचता कि उसकी गति कहां पर जाकर ठहरेगी।
बारिस होने से पहले नहीं सोचती कि उसका बहाव कहां तक रहेगी। मैं तो ठहरा एक
आदमी उन्हीं का बनाया हुआ। जहां दिन ढलेगा वहीं रहा जाऊंगा. . . . ।''
रामदीन
का माथा चकरा गया। इस सड़क छाप छोकरा का इतना उच्च विचार ? उसकी मासूमियत पर
रामदीन को प्यार आने लगा। उसने कहा - ऐसा नहीं हो सकता कि हम आज भर और एक साथ
रहे. . . . ?''
- ऐसा नहीं हो सकता।''
-क्यों. . . . ?''
-तुम चोंगा छोड़ नहीं सकते।. तुम्हारी खांसी - खोखली रुक नहीं सकती। मैं नींद में खलल बर्दाश्त नहीं कर सकता।''
-ऐसा करते है - तुम बड़बड़ाओ और मैं चोंगा सिपचाता रहूं। हम वाद - विवाद करते एक साथ रहे ।''
-यह संभव नहीं ।'' बालक आगे बढ़ने हुआ.
रामदीन ने कहा - अच्छा,तो मैं यह चोंगा ही फेंक देता हूं. . . . . ।''
बालक
ठहर गया। उसने रामदीन की ओर देखकर जोरदार हंसा। कहा-बुढ़ऊ,तुमसे मेरा क्या
रिश्ता। तुम भला उस चोंगे को क्यों फेंकने लगे जो तुम्हारे एकांत का साथी
रहा-''
रामदीन ,बालक के पास आया। उसके गाल में प्यार की चपत लगा कर कहा - बहुत बोलता है रे. . . . । और उसने चोंगा को पटक दिया. . . . . . ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें