बुधवार, 13 जुलाई 2016

साधु और कंजूस

कहने को तो वह सेठ था.उसकीसम्पत्ति कितनी थी इसका भी उसे पूरा ज्ञान नहीं था पर कंजूसी की पराकाþा वह पार कर गया था इसलिए लोग उसे कंजूस के नाम से ही पुकारा करते थे.उसे चंदा मांगने वालों या अन्य  प्रकार के दान मांगने वालो का सदैव भय  लगा रहता अत: वह भोजन करने बैठता तो भी दरवाजा बंद कर देता था ताकि जो भी आये दरवाजा बंद देख बिना कुछ लिए लौट जाये.एक दिन वह दरवाजा बंद करना भूल गया.अभी वह भोजन का पहला निवाला उठाया था कि एक साधु आ धमका.साधू ने कहा - बेटा,मैं भूखा हूं.मुझे एक  रोटी दे दो...।
कंजूस भोजन कर ना छोड़ उठ खड़ा हुआ.कहा- य हां तो मेरे लाय क ही भोजन है.मैं आपको कहां से भोजन कराऊंगा.आप किसी के द्वार जाइये.
साधू वहीं पर अडिग खड़ा हो गया.कंजूस समझ गया कि य ह कुछ लिए बगैर नहीं जायेगा.उसने कहा- तो ठीक है मैं आपको आधी रोटी ही दे सकता हूं.
 - नहीं ,मुझे तो एक रोटी चाहिए...। साधु ने कहा.
कंजूस ने एक रोटी देने से इंकार दिया और साधु ने आधी रोटी लेने से.कंजूस ने भोजन किया और अपने व्य पार के लिए निकल पड़ा.शाम को लौटा तो देखा- साधू उसके दरवाजे पर ही बैठा है.कंजूस ने एक रोटी साधू की ओर बढ़ाते हुए कहा - लो बाबा,आप एक ही रोटी ले  लो पर य हां से च ले जाइये.
- अब एक रोटी से काम नहीं च लेगा.अब तो मुझे दो रोटियां चाहिए यिोंकि भोजन का दूसरा समय  है. साधू ने कहा.
- एक रोटी लेनी है तो ...। कंजूस ने कहा.
न ही कंजूस ने रोटी दी और नहीं साधु ने एक रोटी ली.कंजूस खाया-पीया और दरवाजा भिड़ा कर सो गया.प्रात: उठा तो देखा - साधू अब तक दरवाजे से हटे नहीं हैंअब तो कंजूस घबरा गया- य दि य ह भूखा य हां मर गया तो मैं अनावश्य क फंस जाऊंगा.उसने साधू को दो रोटियां देनी चाही पर साधू ने कहा- य ह तो भोजन का तीसरा समय  है.अब तीन रोटी दोगे तभी काम बनेगा.
पूवर् की ही प्रक्रिया दोहरायी गयी अथार्त्ा न ही कंजूस ने तीन रोटियां दी और नहीं साधू ने दो रोटियां ली.इसी तरह चार दिन बीत गये.साधु चार दिनों से भूखे रहे.वे मरने लाय क दिखने लगे कंजूस घबरा गया.उसने हाथ जोड़ते हुए कहा- बाबा,आपको जितनी रोटियां चाहिए आप लेलो पर य हां से च ले जाओ.
- अब तो रोटी से काम नहीं च लेगा बेटा,य हां से तब मैं जाऊंगा जबकि तुम मेरे लिए कुंआ खुदवाओगे.
- ये आप यिा कह रहे  है.आपको मालूम है कुंआखुदवाने में कितना खच र् आता है.मैं य ह नहीं कर सकता.
- तो ठीक है...जब तक तुम मेरी कह नही मानोगे मैं य हां से हटने वाला नहीं. साधू ने कहा.
कंजूस फिर अपने काम पर च ला गया.आज कंजूस का मन काम पर नहीं लग रहा था.उसका तो दिल दिमाग साधू पर अटक गया था वह बीच  में ही घर लौट आया.उसने कहा- बाबा,आप रोटियां खालो.मैं आपके लिए एक कुंआ खुदवा दूंगा.
- नहीं बेटा,अब तो तुम्हें दो कुंआ खुदवाने पड़ेगे.एक मेरे नाम से एक तुम्हारे नाम से...।  
कंजूस साधू की शतर् अस्वीकार देना चाहा मगर तभी उसनेसोचा- य दि मैंने साधू की बात नहीं मानी तो वे कुंए की संख्या बढ़ते जायेंगे.भलाई इसी में है कि मुझे साधू की बात स्वीकार लेनी चाहिए.उसने साधू की बात स्वीकार ली.कंजूस दो कुंआ खुदवाने तैयार हो गया.कुछ दिनों बाद दोनो कुंए खुद गये तो साधू ने कहा- मैं एक वषर् बाद फिर लौटूंगा तब मेरे कुंए का पानी तुम्हारे कुंए के पानी से कम रहा तो मैं तीसरा कुंआ खुदवा लूंगा.इतना कह कर साधू च ला गया.कंजूस ने सोचा- साधू जिद्दी है.मुझे एक काम करना चाहिए.मैं अपना कुंआ खुला छोड़ देता हूं.साधू के कुंए को बंद कर देता हूं.लोग मेरे कुंए से पानी भरेंगे और साधू का कुंआ सुरक्षित रहेगा.इससे निश्च य  हीमेरे कुंए का पानी कम होगा और साधू के कुंए का पानीज्यों की त्यों रहेगा. कंजूस ने ऐसा ही किया.
एक वषर् बाद साधू पुन: आया.उसे देख साधू ने गवर् से कहा- आप अपने कुंए और मेरे कुंए के पानी को नाप लीजिए.मेरेे कुंए में आपके कुंए से कम पानी है.
साधू कंजूस के साथ कुंए के पास गये.कहा- च लो नापो....।
कंजूस ने दोनो कुंए का पानी नापा.नाप होते ही कंजूस हड़बड़ा गया.उसे साधू की शतर् याद आयी.उसने कहा-मुझसे आप जो भी सौंगध लेनाचाहें ले सकते हैं.मैंने आपके कुंए का पानी किसी को निकालने नहीं दिया.जबकि मेरे कुंए से लोग रोज कई गुंडी पानी ले गए.मैं समझ नहीं पा रहा हूं इसके बावजूद मेरे कुंए में यिों अधिक पानी है और आपके कुंए में कम...।
साधू मुस्काया.कहा- थोड़ी गहराई से सोचो,तुम्हें सब समझ आ जायेगा.
कंजूस सोच ने लगा- सोच ते- सोच ते आखिरउसने उत्तर पा ही लिया.कहा- मुझे सब समझ आ गया....।
- यिा...? साधू ने पूछा.
- मैं आपके कुंए को बंद रखा.उसमें से एक बूंद भी पानी किसी को निकालने नहीं दिया.फिर भी उसका पानी घट गया जबकि मैंने अपने कुंए को खुला छोड़ दिया और प्रतिदिन सैंकड़ों गुंडी पानी निकाला गया पर भी मेरे कुंए में आपके कुंए से ज्यादा पानी है.अथार्त दान करने से धन नहीं घटता अपितु तिजोरी बंद रखने से घट जाता है.आपने मेरी ज्ञानच क्षु खोल दी.
उस दिन से कंजूस को लोग दानी के नाम से पुकारने लगे.   साधू और कंजूस

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