बुधवार, 13 जुलाई 2016

घमंड का परिणाम

सुरेश सर्वेद

रामJाJ को जंगJ के उस पार बसे गांव घोटिया जाना था.उसके साथ उसके पुत्र प्रणव भी था.जंगल के टेढ़े-मेढ़े रास्तों को लांघते सारा दिन निकल गया.पर उन्हें  गांव दिखाई नहीं दिया.पिता पुत्र रास्ता भटक गये.वे घुमावदार रास्तों में इधर से जाते और जब आते तो वे अपने आपको उसी स्थान पर पाते जहां से वे च लेे होते.बार -बार प्रयास के बाद भी वे रास्ता नहीं पा रहे थे.वे वापस अपने गांव लौटने की सोच ते पर वे अपने गांव का रास्ता भी नहीं समझ पा रहें थे.वे भटकते रहे इसी बीच  सूयार्स्त का समय  हो  गया.
सूयार्स्त का अंदाजा लगा पुत्र-पिता भय भीत हो .वे इधर -उधर Òक्ष्ट दौड़ाई उन्हें दूर-दूर तक जंगल के अलावा और कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था.वे सोच ने लगे कि अब जंगली जानवर हमे जीवित नहीं छोड़ेंगे.मृत्यु के भय  ने उनमें दहशत पैदा कर दी थी.वे पुन: जंगल में इस आशा और विश्वास के साथ भटकने लगे कि कोई तो गांव दिखेगा.उन्हें जंगल से नीचे समतल भूमि में एक मकान दिखाई दिया.उनके कदम इस आशा के साथ आगे बढ़ गयी कि  वहां कोई न कोई होगा.
मकान के समीप पहुंच ने पर उन्होंने देखा कि मकान का दरवाजा बंद है.उनने सोचा कि मकान मालिक कहीं गया होगा.वे बाहर ही बैठ कर मकान मालिक का इंतजार करने लगे.शाम रात में बदलने लगी पर कोई नहीं आया तो जंगली जानवरों के डर से वे भीतर प्रवेश कर गये.वहां उन्होंने बतर्न देखा सोचा कुछ खाने को होगा.वे पूरे बतर्न खोज डाले पर कुछ नहीं मिला.वे निराश हो गये.अचानक उन्होंने देखा- बंदरों का एक दल इधर ही आ रहा है.वे भय भीत हो गये.देखते ही देखते बंदरों के दल उस मकान के करीब पहुंच  गये.पिता-पुत्र अपने छिपने की सोच ने लगे.वहां एक कोठी थी वे उसी में घूस गये.उनका अंदाज था कि बंदरों का दल इसी घर में शरण लेंगे और य ह सच  भी हुआ बंदरों के दल ने थोड़ी ही देर में उस मकान में प्रवेश ले लिया.उन्हें लगा कि बंदरों ने उन्हें देख लिया है और वे उन्हें जीवित नहीं छोड़ेगे.मगर बन्दरों ने उन्हें देखा ही नहीं था.दरअसल य ह मकान बंदरो के ठिकाना बन गया था.वे रात्रि में इस मकान में भोजन बनाकर खाते और आराम फरमाते थे.पिता-पुत्र नेदेखा कि बंदरो ने आग जलाकर खीर बनाने लगे हैं.खीर की सुगंध उनके नाक में घुसने लगी.वे भूखे तो थे ही सुगंध ने उनकी भूख को और  भी बढ़ दी.विचारों में ही वे खीर का स्वाद च खने लगे.पुत्र ने पिता से कहा- मुझे जोरों की भूख लगी है.बंदरों से खीर मांगू यिा ?
- तुम पागल हो गये हो यिा ?बंदरों को जरा भी अहसास हुआ कि हम य हां हैं तो वे हमें जीवित नहीं छोड़ेगे.
पुत्र से रहा नहीं जा रहा था उसने फिर कहा- मांगू यिा खीर....?
पिता की इच्छा तो पुत्र को डांटने की हुई मगर वह डर रहा था कि पुत्र रो देगा अत: उसने चुप रहकर पुत्र को समझाना ही उचि त समझा.पिता के लाख समझाने पर भी पुत्र नहीं समझा.और उसने बंदरों को आवाज दे दी- हमें भी खीर दोगे यिा जी.......?
खीर बनाने में व्य स्त बंदरों के कान में आवाज पड़ी वे हड़बड़ा गये.एक क्षण उनमें से एक -एक को लगा कि उनने जो सुना वह सत्य  नहीं है पर दूसरी बार फिर आवाज आयी तो वे खीर बनना छोड़ मकान से भाग निकले.बंदरों को भागते देख उनके मुखिया बंदर ने पूछा- रूको,तुम लोग इस तरह कहां भागे जा रहे हो ?
- हमारी मानो और आप भी य हां से हमारे साथ भागों....।एक बंदर ने रूककर जवाब दिया.
- आखिर बात यिा है .मुझे भी तो बताओ...।
- हमारे मकान में दैत्य  घूस आया है...।
मुखिया बंदर ने हंसा.कहा- अरे मूखोY दैत्य  -वैत्य  कुछ नही होता तुम लोग व्य थर् भय भीत हो कर भाग रहे हो...।
- हम कोई गलत नहीं कह रहे .....।
- बिलकुल गलत कह रहे हो.च लो मेरे साथ.मैं भी तो देखूं ,आखिर दैत्य  होता भी कैसे हैं.
मुखिया बंदर की बात मान सभी बंदर वापस हो गये.इस बीच  पिता- पुत्र खीर खाके फिर से कोठी में घूस गये.बंदर मकान के सामने जाकर बाहर ही रूक गये.मुखिया बंदर ने कहा- अरे,तुम लोग य हां पर यिों रूक गये...।और वे आगे बढ़े.बोले- आओ,मैं हूं न...।
मुखिया बंदर भीतर घुस गया.उसके साथ- साथ सभी बंदर भी घुस गये.उन्होंने देखा - जो खीर उन्होंने बनाई थी उसमें से कुछ खीर गाय ब हैं. वे डर गये.उन्हें विश्वास हो गया कि अवश्य  दैत्य  हैं और खीर खा गया है.मुखिया बंदर ने देखा- बंदर अभी भी भय भीत हैं उसने रौब झाड़ते हुए कहा- तुम लोग बिलकुल भी न डरो.एक यिा हजार दैत्य  आयेगा उनसे भी निपटने मैं अकेला काफी हूं....। इतना कहकर उसने एक उछाल मारा और उसी कोठी के ऊपर जा बैठा जिसके भीतर पिता -पुत्र छिपे थे.
बंदर को कोठी के ऊपर देखकर जहां पिता का प्राण सूखने लगा वहीं पुत्र को मस्ती सुझने लगी.दरअसल बंदर की पूंछ उन तक पहुंच ने लगी थी.पुत्र ने पिता के कान में फूसफूसाया- पिताजी इसकी पूंछ को पकड़ूं यिा..।
पिता ने सिर ठोंक लिया.धीरे से उसने कहा- मूखर्,अब तो मुझे लगने लगा हैं तुम हमारे प्राण के लाले पड़वा कर ही रहोगे.
पुत्र ने पिता की कह अनसुनी करते हुए बंदर की पूंछ पकड़ ली.पूंछ के पकड़ाते ही बंदर बाहर की ओर कूदने हुआ मगर वह अधर में ही लटक गया.अब तो पिता की जान पर आ पड़ी थी.उसने भी पुत्र के साथ पूंछ को कड़क कर पकड़ ली.बंदर झटका देकर पूंछ छूड़ाना चाहा पर पूंछ की पकड़ इतनी मजबूत थी कि वह छूटी ही नहीं .वह जोर जोर से खो-खो करने लगा.मुखिया को विपत्ती मेंफंसा देख सभी बंदर खीर का पात्र वहीं पटक प्राण छोड़ भागे.मुखिया बंदर ने पूंछ छुड़ाने झटका दिया.पूंछ झटके से टूट गयी.मुखिया बंदर भी वहां से प्राण बचाकर भागा.
अन्य  बंदर कुछ दूर पर जाकर बैठे थे.उन्होंने देखा- मुखिया बंदर की पूंछ टूट चुकी है और उसमें से रI बहा रहा हैं.एक बंदर उसके पास आया.कहा-आपको अपनी शिित पर बहुत घमंड था.हमेशा हम लोगो को कमजोर और अपने आपको ताकतवर समझते थे.आपको तो घमंड था कि दूनिया में आपसे ताकतवर कोई नहीं है.
- हां भाई हां,वास्तव में मैं अपने आपको बहुत ही शIिशाली समझता था और इसी घमंड के कारण कि सी को कुछ नहीं समझता था पर अब मुझे पता च ल गया कि य हां मेरे से भी ताकतवर लोग हैं .और हम सब एक हैं. हममें कोई किसी से कमजोर नहीं हैं.
और उस दिन से मुखिया बंदर भी सभी बंदरों के साथ रहने लगा.अब वह दूसरे बंदरों को कमजोर व स्वयं कोशIिशाली घोषित नहीं करता था.

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