रविवार, 6 मार्च 2016

करे कोनो, भरे कोनो

सुरेश सर्वेद

     सुरुज धीरे - धीरे आगास म चढ़े लगिस। ओकर तेज बिगरे म अभी देरी रिहीस। मुलहा के परछी म एक ठन लकड़ी ल अइसे ढंग से रखे रहय जेमा दू चार मनखे आराम से बैठ जावै। उही ठउर म पहुंच गे मनसा हर। वैसे तो मनसा बारहों महीना बिहिनिया - बिहिनिया ले ओ मेर पहुंच जाये। आज कोई पहली बेरा नई रिहीस। मनसा के आये के आरो फुलबासन ल लग गे। फुलबासन मटमटावत घर ले बाहरी धर के निकलिस अउ अपन घर के खोर आगू ल बाहरे लगीस। यहूं चरितर कोई नवा नोहे। जब ले फुलबासन अपन मइके म आ के बइठे हे तब ले ये चलत हे। गांव म गुपचुप इन दुनों के कई तरपट के बात होते रहीथे पर दूनों के दूनों कान म कपास गोंजे कस अपन म लगे रहिथे। फलबासन बाहरी म खोर ल बहारत कहिथे - अच्छा, तंय बता। काली कहां चले गे रेहेस?
मनसा कहिथे - कहूं नई गे रेहेंव। बिहिनिया ले डोली डहर गे रहेंव। चना देखे बर।
- अच्छा, दिन भर नई दिखेस।
- कोनो जरुरी हे का तोला दिखना...? जान सुन के मनसा अइसन गोठिइस। ओ जानना चाहत रिहीस - मोर आये अउ नई आये म फुलबासन ल का फरक पड़थे। फुलबासन घला कम नई रिहीस। किहिस - मोला का जरुरी होही। सोंचेव - रोज आथस त काली काबर नई आयेस।
      अभी दूनों म बाताचीता चलत रहय के मुड़ भर लउठी धरे रतन उही तीर म पहुंच लगीस मनसा फुसफुसइस - देख, आवत हवै नीयत खोट्टा।
मनसा के तीर म पहुंच के रतन पूछिस - मनसा, तोर चना कइसे हवै।
- बने तो दिखत हे रतन, फेर जानथस जब तक घर नई आ जाही वोकर मानी पीना अच्छा नई हे।
- हव भई सहीच ल कहत हस। ठंडा घलोक रुसरुस रुसरुस बाढ़ते जावत हे।
- घर म जाड़ लगीस त रउनीय तापे ल पहुंच गेंव येमेर ...।
     जब पूरा डबरी गांव जानत रिहीस तब रतन ल कइसे पता नई रिहीस होही। पर मुंहु म कहे तो कहे का। तभो ले किहिस - हव भई, अपन घर के भुर्री घलक नई सुहाय, जतका पर डेरौठी के रउनिया सुहाथे।
     मनसा चुप रिहीस। फुलबासन घलक सुन लीस। ओहर भीतरी डहर जाये लगीस। रतन किहीस  - कस टुरी , तंय अपने च डेरौठी ल बाहर के भागत हस। का होतिस, दू बाहरी हमरो खोर डहर मार देतेस त?
जइसे फुलबासन अउ रतन के खेत आजु - बाजु रहै वइसने ऊंकर घर घलक रहै। फुलबासन रतन के डेरौठी ल बाहरे लगीस। फुलबासन के रतन के डेरौठी के बहरई मनसा ल बने नई लगीस पर कहे नई सकीस।
     फुलबासन लहुट  गे। खोर ल बाहरे लगीस। उही बेरा मनसा के बाई रमौतीन अपन घुरुवा म घर के कचरा ल डार के आवत रहय। ओला देख के रतन ल दिल्लगी सुझीस, किहिस - तंय इहां रउनियां तापे ल आय हस अउ देख ओती ले आगी आवत हवै। अइसे ल हो जाये तो रउनियां के तपई तोला मंहगा परे लगे।
     रतन के सब ईशारा ल मनसा के संग फुलबासन समझत रहय पर कहे त कहे का। मुंहु लगई म अपने फजिहत होय के डर। रतन से फुलबासन सीधा मुंहु बात नई करय अउ मनसा संग हंस हंस के गोठियाय। मनसा संग फुलबासन के गोठियई रतन ल फटे आंखी नई सुहाय, पर कहे कइसे। आखिर म फुलबासन रतन के लगथे त लगथे का। ओ हर गांव के टुरी अउ रतन गांव के टुरा। पर मनसा तो घलोक गांव के टुरा रहय। दू लइका के बाप। शरम मरम सब बिसर जाये, फुलबासन के मोहाटी म पहुंचे सांठ। जब फुलबासन अपन ससुराल ले मइके अइस। दू महिना बाद ओकर ससुराल वाले मन ओला लेहे बर अइन। मां बाप दूनों भेजे बर राजी। फुलबासन साफ कहि दिस - मंय नई जावव।
      बहुत बड़का बात होगे। गांव भर बिगरगे। कइसे बिगरिस कोनो नई जाने। घर म बात होय रिहीस अउ हवा पूरा गांव म बिगरा दीस। कोनो कहिथे - जउन बेरा फुलबासन ससुराल नई जावव किहिस ओ बेरा नाऊ हर दामाद बाबू के हजामत बनावत रिहीस। कोनो कहिथे - बरदीहा हर गाय दूहत रिहीस। सच म बात कते मेर ले फइलिस, न फुलबासन के दाई ददा ल गम परिस अउ न दामाद अउ फुलबासन ल। दामाद बाबू अपन संगवारी परलोखिया ल धर के आय रहय। दूनों कोई के मुंहू सुन के फक्क पड़गे। दाई - ददा, फुलबासन ल समझाये के उदिम करिन, पर फुलबासन अपने म डटे रिहीस। ससुराल नई जाय के कारन पूछित पर फुलबासन के तीर म कोनो कारन नई रिहीस। कहि दीस - अइसने नई जावव। बेटी ल अड़े  देख दाई - ददा दामाद बाबू ल समझाईस - लइका अपन म अड़े  हवे। हम समझाबो, बुझाबो।
     सास ससुराल के समझाईस ल समझ के दामाद बाबू अपन संगवारी परलोखिया के संग अपन गांव लहुटगे।
दामाद बाबू के दाई ददा ल पता चलिस त ओमन गुस्सा गे। तुरते गांव जाये के बिचार करे लगीन। पर ओमन सोचिन - जइसे लइका ल खाली हाथ पठो दिस हमला घला ल पठो दे। परलोखिया तो गांव भर म बो डरे रहे। अब लाज शरम ल जतने के लइक जघा नई रहिगे रिहीस। गांव के दू - चार सियनहा मन ल बला के दामाद बाबू के ददा अपन पीरा ल ऊंकर तीर रखीन। गांव के चार सियनहा दामाद बाबू के ददा संग ओकर ससुरार जाये बर तियार होगे।
     गांव म समधी के संग चार अउ सियनहा मन ल आये देख के फुलबासन के दाई ददा के हवा होगे। पर करे का। सगा मन ल बने अपन घर म बइठइन। चाय पानी पियाइन। एक सियनहा कहिस - कस रे भई, हमर लइका बहू ल लेगे खातिर आये रिहीस, ओला बाबू संग काबर नई पठोयेव?
- नोनी कहिथे, कुछ दिन रहूंहू फेर जाहूं कहि के। साफ लबारी मार दिस फुलबासन के ददा ह।
आये संग मन कोई नवा नेवेरिहा नई रिहीन। ओमन सब समझत रिहीन कि बहु के ददा परदा डारत हवै। एक सियनहा किहिस - जउन बात हे फोर के कहो सगा। हम मन इहां झूठ लबारी ल मोटरिया के गांव लेगे बर नई आय हन।
     अब तो सही ल कहिना परिस - का बतावंव सगा, जब ले दामाद बाबू जुच्छा हाथ गे हे। नोनी ल समझा समझा के हम दूनों प्रानी हताश होगेगन। ओहर अपने च अड़े हवै।
- जब तोर टुरी ल ससुराल नई जाना रिहीस त बिहाव ल काबर करिस? उचहा आवाज म एक सियनहा किहिस।
- घर के फदीता ल बाहर झन निकालो सगा। फुलबासन के ददा के हाथ जुड़गे।
- ये कोई तोपे ढांके के नोहे सगा, आज नई तो कल खुलबे करही। बहु ल बला। हम बात करबो। पहिली सियनहा किहिस।
      फुलबासन अइस। ओला गांव ले आये  सियनहा मन समझाइन पर ओहर एक ठन रट लगा ले रिहीस - मंय ससुराल नई जावव। काबर नई जावव ऐकर जुवाब ओहर देबे नई करिस। अब तो सियनहा मन के गुस्सा गरमा गे। किहिस - अइसन में चार समाज ल जोरे ल परही सगा।
     फदीता अब घर ले समाज अउ गांव म फैले ले कोनो नई रोक सके अइसन समे आ गे। फुलबासन ल फेर सबो के सबो समझाये के परयास करिन पर सब असफल। आखिर म गांव के मुखिया अउ दू चार गांव के सियनहा मन मेर सियनहा मन अपन बात ल रखीन अउ रात म बइठका के तियारी होय लगीस। अब तो फुलबासन के दाई ददा मेर मुड़ ल गड़ा के चार समाज के बात सुने के अलावा कोनो चार नई रिहीस। बइठका म गांव वाले मन जुरयागे। मजा लेवइया मन के कमी नई रिहीस। बात उठिस। बइठिस। फुलबासन अपने च अड़े रिहीस। आखिर म फइसला होइस- जब फुलबासन, अपन ससुराल नई जाना चाहय त येकरो लइका ल स्वतंत्र छोड़ो। ओकरो दिन जवानी हे। दूसरा बिहाव कर अपन परिवार चलाही।
     निर्णय होगे। फुलबासन अउ ओकर बिहाता के संग छुट गे। अउ जब ले फुलबासन अउ ओकर बिहाता संग छुटिक छुटा होइस। कतको झन मन फुलबासन ल बिहाय बर अइन पर फुलबासन नई मानिस। धीरे - धीरे फुलबासन के ससुराल छोड़े अउ दूसरा बिहाव नई करे के कारन न सिर्फ ओकर दाई - ददा ल बल्कि पूरा गांव ल समझ आये लगीस। पर कहे त कहे कोन।
     रोज बिहिनिया ले जइसे मनसा फुलबासन के खोर तीर म आ के ठड़  जाये वइसने आ जो ठाड़े हे रिहीस। फुलबासन बाहरी म खोर ल बाहरिस अउ अपन घर कोती खुसरगे। फुलबासन के घर म घुसरे के बाद मनसा अपन घर कोती लहुट गे।
     रमौतिन रोज - रोज  मनसा के चरितर ल देखे अउ ओकर तन - बदन म आगी लग जाये। कहे कुछू नई पर घर के बर्तन मन ल उठा पटक करे। ओहर छकछक ेले गोरी रिहीस ओकर गुस्सा नाक म चढ़े अउ ओहर ललिया जाये। ओकर गुस्सा ल मनसा अनुभव करे पर हंसत कहय - थोरिक धीरे पटक बर्तन मन ल, टूट - फूट जाही।
     रमौतिन कुछू नई कहय। गरम गरम चाय ल कप म ढार के मनसा मेर टेका दे। कप के ठेंठा ल खुदे धरे रहय अउ कप ल मनसा ल धरा दीस। चाय ले गरम कप रिहीस। मनसा के हाथ जर गे। मनसा किहिस - चाय दे के ये कोई तरीका आवै?
- अउ कइसे देथे ....। कहत रमौतिन रंधनी डहर चल दीस। मनसा चाय पीइस कोठा डहर गीस। घर के बाहिर चार ठन थुनिया लगा के खद्दर छा दे रहय। उही मेर कोटना रिहीस। बइला बांधे बर खूंटा रिहीस तेमा ल के बइला मन ल बांध दीस। कोटना म पानी डारिस अउ उही म कूटी डाल दीस। बइला मन खाये लगीस। मनसा बइला मन ल दाना पानी दे के फेर अंगना म अइस अउ रमौतिन ल आवाज दीस  - रमौतिन ....।
     रमौतिन रंधनी खोली डहर ले निकलत किहिस - का ये....।
- मंय तरिया डहर जावत हंव। मनसुख आही त बता देबे।
     रमौतिन उंकरिस न भुकरिस। मनसा के चरितर ल देख - देख के ओकर तन बदन म आगी फुकत रहै। कहे कुछु नई पर करके मनसा ल जेता दे कि ओहर मनसा ले नाराज हवै।
     गाँव के माई लोगन मन मनसा अउ फुलबासन के संबंध ल ले के खुसुर - पुसुर  करैं। उंकर खुसुर - फुसुर  रमौतिन के कान तक पहुंचे अउ ओहर जर - भुन जाये। कोनो ल कोई जुवाब नई दे पाये। दे ता दे कइसे, ओकर गोसइयां बइसने रिहीस।
     एक दिन गाँव म फुलबासन के पाँव भारी होए के फुसफुसाहट सुरु होइस अउ गाँव गली ल छानत रमौतिन के कान म पहुंच गे। अब तो घर म कलहा सुरु होगे। दुनों के गोठियाना - बतियाना लगे रिहीस पर अब तो उंकर चरितर - मरयादा लांघ डरे रहै। मनसा के कान म खबर पहुंचिस त उहू अकबकागे। ये बात ल मनसा अउ फुलबासन जानत रिहीस के उंकर बीच सिरिफ अउ सिरिफ गोठियाई - बोलाई के नाता रिहीस। येकर ले आगू कुछु नई। मनसा जानत रिहीस - फुलबासन अमल म कइसे होइस, ऐला फुलबासन ही बता सकत हे। ओहर फुलबासन के डेरौठी म जा के खड़ा होगे। फुलबासन अपन घर ले निकलिस। मनसा किहिस - ये सब कइसे हो गे, फुलबासन?
- इही बात मंय तोर ले पूछव त? फुलबासन किहिस।
- पर हमर बीच तो अइसन नाता नई रिहीस।
- ये ला सिरिफ मंय अउ तंय जानथन।
     उंकर बीच बाताचीता चलत रिहीस उही बेरा रतन उंकर बीच आ गे। रतन ल देख के फुलबासन मुसका दीस। रतन बर हरदम ललियाये फुलबासन के मुसकान कुछु अउ कहानी कहत रिहीस। रतन घला मुसका दीस। बात साफ रहै पर मनसा अउ फुलबासन के संबंध गाँव भर बिगरे रहै। रतन किहिस - मनसा, अब तो तोला फुलबासन ल रखे ल परही।
     तरिया खाल्हे दू खेत के आड़ म फुलबासन अउ रतन मन के खेत रहय। खेत के बीच मेड़ म मचान बने रहय। दुनों के खेत म चना अउ गहूं बोवाय रहिस। चरबज्जी बेरा फुलबासन सुआ हर्राये अउ बेंदरा भगाए बर खेत कोती जावै। उही बेरा रतन घलक लठंगा - लठंगा पहुंच जाए। मुंधियार होवत - होवत ओ मन खेत कोती ले लहुटे।
     रतन के फुलबासन के पीछु लगई मनसा ल नइ भावै पर कहे त कइसे? रतन अउ फुलबासन के खेत आजू - बाजू रिहीस। न रतन अपन खेत के रखवारी करे बर रुक सकत रिहीस न फुलबासन। मनसा एक दिन फुलबासन ल जरुर कहे रिहीस - देख फुलबासन, रतन नीयत खोट्टा हवै। ओकर ले बच के रहिबे।
- का तोला मोर ऊपर भरोसा नई हे। फुलबासन पूछे रिहीस।
- तोर ऊपर पूरा भरोसा हवै पर रतन ऊपर नई हे।
- तोला रतन ले अतका डर हवै त मोला चुरी पहिरा के अपन घर काबर नई ले जावस। सब झंझट खतम हो जाही। फुलबासन किहिस अउ जोर दार हंस दीस। हरदम फुलबासन के बोलई - हंसई मनसा न बड़ नीक लगे पर ओ दिन फुलबासन के  बोलई  हंसई मनसा ल नई भाईस। मनसा के बोलती बंद हो गे।
     फुलबासन अपन बात म कतका ईमानदार रिहीस येला तो उही जानें पर ओकर पाँव भारी होवई मनसा ऊपर भारी पर गे रिहीस।
     काकर - काकर मुंहूं ल मनसा रुंधतीस। ओहर हारे जुआरी बराबर अपन घर कोती लहुंट गे ....। 

गली नं- 5, एकता चौंक, ममता नगर
राजनांदगांव ( छत्‍तीसगढ़ )

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