गुरुवार, 24 दिसंबर 2015

भ्रम यात्रा

सुरेश सर्वेद
 
मैं पुस्तक पढ़ते बैठा था कि एक काला बिच्छू पैर पर गिरा. मैं चीख उठा - अरे बाप रे, मुझे बिच्छू ने डंक मार दिया. खूब जलन हो रही है. विष चढ़ रहा है. शरीर में शून्यता छाने लगी है. आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा है. . . अब क्या करुं. किसे आवाज दूं. कंठ अवरुद्ध. अरे, सर्वांग पसीने से सराबोर. लगता है विष प्रभावशील हो रहा है.
मैं चीखने - चिल्लाने लगा. मेरी आवाज सुन अमित दौड़ा चला आया. पूछा - तुम्हें क्या हुआ. तुम कांप क्यों रहे हो. . . ?
- मुझे बिच्छू ने डंक मार दिया.
- तुम्हारी स्थिति स्पष्ट करती है कि तुम्हें भंयकर विषैला बिच्छू ने डंक मारा. मैं गजेन्द्र को बुला लाता हूं. . . ।
अमित चला गया. मैं खाट तक पहुंचने का प्रयास करने लगा पर पग बढ़ाना संभव नहीं हो पा रहा था. मेरी शक्ति क्षीण होती जा रही थी.
अमित, गजेन्द्र को बुला ले आया. उनके साथ और भी लोग थे. गजेन्द्र तो मुझसे अधिक घबराया हुआ था. उसने पूछा - बिच्छू का डंक कहां पर लगा है. . . . ?
मैंने पैर की ओर इशारा कर दिया. गजेन्द्र मंत्रोच्चार के साथ पैर का मालिश करने लगा. थोड़ी देर बाद उसने पूछा - विष कहां तक चढ़ा है. घुटने तक तो नहीं. . . ?
उससे से भी ऊपर, कमर तक चढ़ गया है. मैंने कहा.
गजेन्द्र पुनः मालिश करने लगा. उसने फिर पूछा -अब तो विष उतर रहा है न ! घुटने तक तो उतर ही गया होगा ?
- हां, उतर गया है. . ।
- सच - सच बताओ, विष उतर रहा है न ?
- खाक उतर रहा है. यहां तो पूरे शरीर में आग लगी है. मैं झल्ला गया.
- तब तो मुझसे सुधर पाना संभव नहीं. काला बिच्छू खतरनाक होता है. तुम डॉक्टर को बुला लाओ.
गजेन्द्र भी पसीने से तरबतर हो गया. वीरेन्द्र डॉक्टर को बुलाने गया.
गांव का डॉक्टर आया. उसने मुझे सिर से पांव तक देखा. कहा - तुम लोगों को किसी के जीवन की चिंता कतई नहीं. केस बहुत सीरियस है. मैं बचा पाने में असमर्थ हूं. इसे तत्काल जिला चिकित्सालय ले जाओ. देर करोगे तो डॉक्टर क्या, ईश्वर भी नहीं बचा पायेगा.
हां, डॉक्टर ने सत्य ही कहा है. वास्तव में मेरा बचना मुश्किल है. अब मेरी पत्नी श्वेता विधवा हो जायेगी. वह माथे पर सिन्दूर और हाथ में चूड़ियां नहीं पहन पायेगी. मरने से पूर्व उसे कुछ समझा देना मेरा फर्ज है.
मैंने श्वेता को बुलाया. कहा - श्वेता, अब मैं बच नहीं पाऊंगा. इन छोटे - छोटे बच्चों का भार तुम्हें सौंपता हूं. तुम चाहो तो दूसरा विवाह कर लेना मगर इन बच्चों को अपने साथ रखना. इन्हें पढ़ाना - लिखाना योग्य व्यक्ति बनाना.
पास ही उमेश खड़ा था. कुछ दिन पूर्व उससे मेरी लड़ाई हुई थी. मैंने कहा - उमेश, मुझे तुमसे बैर करने का दंड मिल गया. तुमने कहा था न कि सांप - बिच्छू काटे लो तुम्हारी इच्छा पूर्ण हो गयी. तुम्हारी आत्मा को शांति मिलेगी.
- शशांक, तुम मुझ पर दोषारोपण न करो. तुम्हें कुछ नहीं होगा. हम तुम्हें अभी मुख्य चिकित्सालय राजनांदगांव ले जायेंगे. तुम्हारा उपचार करायेंगे. फिर देखना, भले चंगे हो जाओगे. . . . । उमेश ने सांत्वना दी.
- यह मात्र सांत्वना है. शत्रु इसे तुम भी जानते हो. मेरा मरना लगभग तय है. जब डॉक्टर ने मुझे बचाने असमर्थता जाहिर कर दिया है तो फिर बचूंगा कैसे ? अब तो तुम भी मुझे श्रद्धाजंलि दोगे. मेरी तेरहवीं पर पूड़ी बड़ा खाओगे. . . ।
अरे, यमदूत आ ही गये. ये मोटे - ताजे और काले हैं. ये रस्सी का फंदा मेरे गले में डाल रहे हैं. ये मेरे प्राण लेकर ही दम लेंगे. . ।
नहीं. . नहीं, अरे, यमदूत कहां अदृश्य हो गये. मेरे सामने तो उमेश ही खड़ा है. यह मुझसे मोटर साइकिल में बैठने का आग्रह कर रहा है.
तो मुझे राजनांदगांव मोटर साइकिल से ले जायेंगे. पर क्या उस पर बैठ पाऊंगा. मोटर साइकिल में हिचकोले पड़ेंगे. उससे शरीर हिलेगा और जहर फैलेगा. हे प्रभु, मैं क्या करुं ?
उमेश मुझे पकड़कर मोटर साइकिल तक ले गया. इतने में पिता जी आये. मैंने कहा - पिता जी,अब बच पाना मुश्किल है. मैं आपको कंधा देता पर अब आप मुझे कंधा देंगे. कैसा विपरीत समय आ गया है ?
- अपने कंठ से अशुभ वाक्य क्यों निकालता है. तुम्हें कुछ नहीं होगा. पिता जी ने कहा.
- खाक कुछ नहीं होगा. अपनी आंखों से मेरी हालात देख रहे हो. फिर भी कुछ न होने का आश्वासन ? मेरी मृत्यु के समय भी मजाक कर रहे हो. मां बीमार थी तो तुमने कहा था - अनुराधा, मैं यमदूतों से भी लड़कर तुम्हें बचाऊंगा. पर क्या वह बच सकी. तुम सब चाहते हो मैं मर जाऊं. . . . ?
दो - तीन लोगों ने मुझे पकड़ा. दीपक ने मोटर साइकिल की हैंडल सम्हाली. मुझे मोटर साइकिल पर लोगों ने बिठाया. मेरे पीछे उमेश बैठा. वह मुझे कंसकर पकड़ा था. गाड़ी चलने हुई कि खाली गुंडी दिख पड़ी. . . ।
हाय राम,यह अपशगुन. अब निश्चय ही बीच रास्ते में मेरे प्राणांत होंगे. नहीं. . नहीं, लोग करैत के काटने से बच जाते हैं तो फिर मैं एक बिच्छू के काटने से कैसे मर जाऊंगा ?
मोटर साइकिल चल पड़ी. मुझे लगा - गाड़ी भाग रही नहीं बल्कि मैं उड़ रहा हूं. स्वयं को सम्हालने असमर्थ हूं. उमेश की पकड़ और जोरदार हो गई है. कहीं मैं उछलकर गिर न जाऊं. मुझे डॉक्टर के पास पहुंचने की जल्दी है पर रास्ता लंबा लग रहा है.
सामने नीलकंठ दिखा. यानी शुभ. अब मुझ पर बम भी गिर जाये या कोई रायफल से दाग दे मगर मेरा कुछ नहीं बिगड़ेगा. . . . ।
हम राजनांदगांव पहुंचे. अस्पताल में मुझे टेबल पर लिटाया गया. मैं हड़बड़ा न जाऊं अतः मुझे पांच युवकों ने दबोच रखा था. डॉक्टर को देखा तो वह यमदूत से कम नहीं दिख रहा था. यमदूत ने कहीं डॉक्टर का रुप तो नहीं ले लिया. . उसने इंजेक्शन लगा दिया.
अरे, अब तो मुझे अच्छा लग रहा है. मैं बिलकुल स्वस्थ हूं. बिच्छू का विष उतर चुका है. यानी मृत्यु से मैंने बाजी मार ली. वास्तव में डॉक्टर प्रशंसा के लायक हैं. इसने मुझे जीवनदान दिया है.
हम वापस होने लगे कि संदीप दिखा. वह पत्रकार था. उसने कहा -अरे यार शशांक, तुम यहां. . . ?
- हां, मैं यह कहने आया हूं कि तुम अपने कार्यालय में बैठकर गांव के विकास से संबंधित झूठी रिपोर्ट छापो. पुरस्कार हथियाओ । शशांक, संदीप पर बरस पड़ा.
- तुम तो नाराज हो गये. . . ।
- और नहीं तो क्या ? तुम्हें पता है कि हम ग्रामीणों पर क्या बीतती है. कैसी - कैसी मुसीबतें आती है. वहां हमें सांप डंसते हैं. बिच्छू डंक मारते है. ग्रामीण बेमौत मरते हैं. वहां उपचार का कोई प्रबंध नहीं. क्या इस पर कभी तुम्हारी कलम ने क्रांति की. जाओ मित्र जाओं, ग्रामीण रिर्पोटिंग पर कोई पुरस्कार हड़पने कोई तिकड़म भिड़ाओ.
हम वहां से चल पड़े. गाड़ी तेज दौड़ने लगी. ठंडी हवा बह रही थी. इससे मेरे शरीर को ठंडक मिल रही थी. हम घर पहुंचे. घर में अब तक भीड़ है. वहां पहुंचते ही लोग हमारे इर्द गिर्द मंडराने लगे. सहारा देकर मुझे गाड़ी से उतारने का प्रयास किया गया मगर मैं तो स्वयं को पूर्ण स्वस्थ महसूस रहा था मैं गाड़ी से बिना सहारा के उतर गया.
विष्णु आगे आया. उसने मेरे शरीर को स्पर्श किया. कहा - अरे, तुम्हारा शरीर तो बर्फ के समान ठेडा है. लगता है तुम्हें सन्निपात हो गया. . . ?
मैं हड़बड़ाया - क्या मुझे सन्निपात हो गया. सन्निपात है या डॉक्टर की सुई का रियेक्शन ?अब क्या होगा. एक काल से बचा तो महाकाल ने दबोच लिया. हे प्रभु, अब तुम ही रक्षक हो. . ।
विष्णु ने श्वेता से कहा - श्वेता इसे कंबल उढ़ाओ,गुड़ - नारियल खिलाओ. इसके शरीर को गर्मी मिलनी चाहिए.
मैंने अपने शरीर को छूआ - हां. . . हां, मुझे सन्निपात हो गया है. तभी तो अभी तक ठंड लग रही है. अभी भी तो मैं कांप रहा हूं. नाक से पानी निकल रहा है.
श्वेता कंबल ले आयी. उसे ओढ़कर मैंने कहा - अलमारी में रखा नारियल तो ले आओ. . . ।
- पर उसे मैंने संतोषी मां के लिए रखा है. . . । श्वेता ने कहा.
यहां मेरा प्राणांत होने जा रहा है और तुम्हें संतोषी मां की भक्ति की पड़ी है. अच्छा,रहने दो. मुझे नारियल नहीं चाहिए. . । मैं नाराज हो गया.
श्वेता सकपका गयी. वह गुड़ और नारियल ले आयी. मैंने उन्हें खाया और चाय भी पी.
अब मुझे अच्छा लगने लगा है. भीड़ छंट चुकी है. मैं मृत्यु से एक बार फिर जीत गया हूं.
मैं निश्चिंत टहल रहा था कि मेरी पुत्री पिंकी आयी. उसने कहा - पापा, मेरा काला बिच्छू कहां है. . ?
बिच्छू का नाम सुनते ही भय के कारण मैं कूद पड़ा. मेरे हृदय की धड़कन बढ़ गयी. घबराहट में पूछा - कैसा बिच्छू, कौन सा बिच्छू. . . ।
पिंकी ने कहा - आप पुस्तक पढ़ रहे थे न,उसमें ही मैंने काले बिच्छू को दबा कर रख दिया था. वह तो प्लास्टिक का था.
मैं उछल पड़ा - ऐं. . . , तो क्या वह नकली बिच्छू था. उसे तो मैंने असली ही बिच्छू समझा था.
मैं वहां पर जाकर देखा जहां पर मुझे बिच्छू काटा था. वहां पर अब तक बिच्छू पड़ा था. पिंकी ने उसे दौड़ कर उठा लिया. इसका मतलब न ही मुझे बिच्छू ने काटा था और न ही मुझे सन्निपात हुआ था. मैं पूर्व में स्वस्थ और अब भी स्वस्थ हूं. . . ।

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