गुरुवार, 24 दिसंबर 2015

पीड़ा

सुरेश सर्वेद
 
त्नप्रकाश और एकांत की मित्रता शीघ्र ही गाढ़ी हो गई । रत्नप्रकाश इस शहर में पूर्व से रहता था । एकांत पहली बार इस शहर में आया था । रत्नप्रकाश और एकांत एक ही स्थान पर काम करते थे । लेकिन आज तक एकांत ने कभी रत्नप्रकाश को आभास नहीं होने दिया था कि उसका भी भरा पूरा परिवार था । अतः रत्नप्रकाश ही नहीं अपितु उसकी पत्नी क्षमा भी यही समझती थी कि एकांत अभी तक अविवाहित है ।
जिस दिन उनकी छुट्टी रहती दोनों मित्र बैठकर घंटों गप्पें उड़ाते । क्षमा अक्सर मजाक कर बैठती । पूछती - एकांत, तुम शादी कब कर रहे हो ?
क्षमा का प्रश्न एकांत पर वज्रपात करता लेकिन वह सफेद मुस्कान ओठ पर लाता, कह देता - इतनी जल्दी भी क्या है ?
- क्या वृद्धावस्था में करोगे ?
क्षमा के प्रश्न का उत्तर एकांत के पास रहता पर वह कुछ नहीं कहता था । वह चुपचाप वहां से खिसक लेता ।
जब भी क्षमा उससे प्रश्न करती तो उसकी आँखों के सामने उसकी पत्नी जाहनवी का चेहरा घूम जाता । जाहनवी उससे बहुत प्यार करती थी । घर का कार्य तो पलक झपकते ही कर लेती । ऊपर से खेती बाड़ी में हाथ बंटाती । समय पड़े मजदूरी करने भी चली जाती । एकांत जाहनवी की याद में सारा जीवन जी लेना चाहता था ।
आज छुट्टी थी । एकांत, रत्नप्रकाश के घर आया । क्षमा अपने कार्य में व्यस्त थी । एकांत के पैर क्षमा के पास ठिठके फिर आगे बढ़ गये ।बैठक में रत्नप्रकाश अखबार पढ़ रहा था । एकांत को सामने देखकर उसने खाली कुर्सी की ओर संकेत किया । एकांत उस खाली कुर्सी में बैठ गया । रत्नप्रकाश ने अखबार टेबिल पर रखा । कहा - क्या बताऊं यार, मैं तो नून - तेल - लकड़ी को लेकर हताश हूं । मंहगाई आसमान छू रही है ।
- ओहो, बंद भी करो अपना रोना - धोना . . . . ? एकांत ने कहा ।
- तुम समझते क्यों नहीं ?
- क्या समझूं . . . ?
- हां, समझकर करोगे भी क्या ?अगर तुम पर भी दो - चार लोगों का भार होता तो समझ आ जाता । पारिवारिक झंझट क्या होती है ? रत्नप्रकाश थोड़ा रुका और फिर आगे कहा - कभी - कभी मन में आता है - तुम्हारे समान अकेला होता । हंसता - मुस्कुराता मगर ये विचार व्यर्थ जाता है । मैं सदैव उलझन में उलझा रहता हूं । तुम सदैंव मुस्कराते रहते हो । आखिर तुम्हारे आगे - पीछे उलझनें जो नहीं है ।
रत्नप्रकाश अपने माथे को टटोलने लगा , मानो चिंताएं गिनने का प्रयास कर रहा हो ।
एकांत को पुरानी घटना याद हो आयी । उसकी मां को कैंसर हो गया था । चिकित्सा कराते - कराते गहने बिक चुके थे । शेष रह गयी थी तो मां की गले में पड़ी चांदी की सुतिया । एक दिन मां उसे भी उतार दी । एकांत ने सुतिया को न बेचने की सलाह दी। मां ने कहा -एकांत जरा सोच, घर में खाने को दाना नहीं । मेरा उपचार की बात छोड़। मैं तो मर ही रही हूं । तुम जीवित लोगों को जीने के लिए तो दाना चाहिए ही न ? अंततः एकांत को मां की बात माननी पड़ी । उसने सुतिया को व्यापारी छलशत्रु के पास रेहन रख दिया । पैसा लाया उससे घर का आवश्यक सामान लाया । शेष बचे रुपए से मां का उपचार करवाया । जितनी सेवा वह अपनी मां क ा कर रहा था उससे कहीं अधिक सेवा उसकी पत्नी जाहनवी कर रही थी । दुर्भाग्य ऐसा था कि उस वर्ष पानी भी नहीं गिरा । अकाल की स्थिति निर्मित हो गई ।
वह शाम मां की जिन्दगी की आखिरी शाम थी । सूर्य पहाड़ की ओट में विलीन हो गया था । अंधेरे का जाल चारों ओर बिछ चुका था ।रात गहरा चुकी थी । आवारा कुत्ता भौंककर रात्रि को और भी भयावह बनाने उतारु थे ।
घर की घोर कालिमा को भगाने का प्रयास टिमटिमाती लालटेन कर रही थी ।अचानक हवा का एक झोंका आया और उसने लालटेन को बुझा दिया । एकांत माचिस की तीली जलाता कि एक हिचकी के साथ मां की आत्मा शरीर से मुक्त हो गई । मां के क्रिया कर्म के लिए रुपयों की आवश्यकता थी । उसने खेत को गिरवी रख दिया ।
बहुत दिनों तक घर सूना - सूना लगता रहा, हरा भरा तो तब लगने लगा जब जाहनवी गर्भवती हुई ।
जाहनवी के प्रसव का समय आया । जाहनवी प्रसव पीड़ा से व्याकुल थी । दाई उसे हिम्मत बंधवा रही थी । उसकी तकलीफ बढ़ती गयी ।पड़ोसी औरतें आयी । उनमें से कुछ ने सलाह दी कि डाक्टर बुला लाओ । पुनः वित्त समस्या आ खड़ी हुई ।एकांत व्यापारी छलशत्रु के पास गया । कहा - सेठजी, मुझे कुछ रुपए और दे दीजिए, वरना पत्नी भी मर जायेगी ।
- मैंने कब अस्वीकारा है . . . . । व्यापारी छलशत्रु ने कहा ।
- जल्दी कीजिए न, डाक्टर को बुला लाने में भी समय लगेगा ।
- क्या लाये हो ?
- वो मां की सुतिया आपके पास गिरवी है न, उसे खरीद ले ।
- वह तो कब की डूब चुकी है ।
- क्या ?
एकांत ने आश्चर्य के साथ प्रश्न किया । लेकिन उसे तत्काल अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया । उसने सुतिया छह माह में छुड़ाने का वचन दिया था । जबकि पूरे दस माह हो चुके थे । अंततः उसे जमीन बेचनी पड़ी ।
एकांत डाक्टर के पास गया ।उसे लेकर वापस आया ।घर के बाहर औरतें खड़ी थी ।सभी शांत थीं ।स्थिति ने स्पष्ट कर दिया था कि अप्रिय घटना घटी है । एकांत ने घर भीतर प्रवेश किया । पत्नी की लाश जमीन पर पड़ी थी । उसके ठीक बाजू में एक बच्चा था । दृश्य देख एकांत व्यथा से छटपटा कर चीख उठा - नहीं . . . . ।
एकांत के चीखने से रत्नप्रकाश हड़बड़ा गया । आवाज क्षमा तक पहुंची । वह भी दौड़कर आ गयी । रत्नप्रकाश ने पूछा - क्या हुआ एकांत . . . . ?
एकांत निःशब्द हो गया । वह कभी रत्नप्रकाश को तो कभी उसकी पत्नी क्षमा को देखता रहा . . . . ।

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