गुरुवार, 24 दिसंबर 2015

वृद्धावस्था

सुरेश सर्वेद 
म्र की ढलान के साथ ही उसका शरीर कमान की तरह हो गया. अस्सी बरस की उस बुढ़िया का नाम था सुनयना. एक मात्र लाठी ही उसके शरीर का सहारा बनी हुई थी. जब से बुढ़ापे ने उसके शरीर का ग्रहण किया था. बिना लाठी के वह कहीं नहीं जाती थी. उसने घुटनों पर बल देकर छपरी में बैठ गयी. अपनी उस लाठी को दीवाल से सटा कर रख दी जो एक प्रकार से उसका एक अंग का रुप धारण कर ली थी. टूटा चश्मा नाक के ऊपर था. उसने चश्मे के भीतर धंसी कमजोर पड़ गयी आंखों में बल दिया और आंगन पर उतर आयी धूप को देखा. उसने अनुमान लगाया - ग्यारह साढ़े ग्यारह बज गये होंगे.
छपरी से लगी थी रसोई. वहां उसकी पुत्रवधू प्रियंका भोजन बनाने व्यस्त थी. मसाले की गंध उड़ रही थी. गंध इतनी जर्बदस्त थी कि सुनयना उससे ही सब्जी का स्वाद लेने लगी. बूढ़ापे की लालची प्रवृत्ति उसे छू गयी थी. वह चाह रही थी - उसे थोड़ी सब्जी मिल जाये तो वह चटखारे ले कर खा ले मगर सब्जी तो अभी अधपकी थी और फिर वह सब्जी उसे नहीं मिलेगी ऐसी भी बात नहीं थी पर सब्र नहीं था उस बुढ़िया को. अभी उसे बैठे क्षण दो क्षण हुआ था मगर उसे ऐसा लग रहा था मानों घण्टों से वह बैठी हो. अब वह सब्जी का चटखारा ले ही लेना चाहती थी. उसने कहा - बहू, भोजन तैयार हो गया हो तो मुझे परोस देती. . . . ।
- कुछ समय और लगेगा मां जी. . . . . . । बहू का जवाब था.
प्रियंका की बात से सुनयना को तो लगा कि वह बहाना बना रही है मगर सच क्या था यह वह भी जानती थी. अब उससे वहां बैठे रहना नहीं हो पा रहा था. वह लाठी उठायी. उसके सहारे अपने शरीर को उठाकर आंगन से होते हुए अपने कमरे में आ गयी. प्रियंका अपने काम में ही व्यस्त रही. जब भोजन तैयार हो गया तो प्रियंका पाकगृह से बाहर आयी. उसने देखा, छपरी में उसकी सासू मां नहीं है. वह उसके कमरे की ओर गयी. उसकी सासू मां खाट पर पड़ी थी. सुनयना ने कहा - मां जी, चलो भोजन तैयार हो चुका है .
सुनयना चुप रही. प्रियंका को लगा उसकी नींद लग गयी होगी. उसने पुनः कहा - मां जी, ऐ मां जी. . . चलो, भोजन तैयार हो चुका है.
अब बुढ़िया कसमसायी. बोली - अभी मुझे भूख नहीं है.
- अभी तो आप भोजन मांग रही थी . बहू ने प्रश्न किया.
- तब भूख थी, अब मर गयी.
बहू समझ गयी उसकी नाराजगी. उसने कहा - अभी तो साढ़े ग्यारह ही बजे हैं . और फिर सुबह नास्ता भी तो की थी. रोज तो इसी समय भोजन करती है. चलिए. . . . . ।
- तो क्या नास्ता अब तक पेट मे पड़ा रहेगा. मुझे नहीं करना है अभी भोजन. . . . . . ।
बुढ़िया उठी. लाठी पकड़ी और टेकती बाहर की ओर निकल गयी. प्रियंका पुनः अपने काम में लग गयी.
जब से सुनयना वृद्धावस्था में पहुंची थी. वह चिड़चिड़ी बन गयी थी. वह जो मांग करती तत्काल मिल गया तब तो ठीक नहीं तो पूरा घर सिर पर उठा लेती थी. लाख विनय अनुनय का उस पर कोई असर नहीं होता था. यह एक दिन की बात होती तो अलग बात थी. ऐसा तो रोज रोज होता था इसलिए बहू भी मनाते तक मनाती नहीं मानने पर वह अपने काम में लग जाती थी.
सुनयना भी कभी - कभी स्वयं कोसती. कहती - उसे मौत क्यों नहीं आती ? लेकिन खाट पकड़ते ही बवाल मचा देती. चिल्लाने लगती - मुझ पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है. मेरा उपचार कराने से सब कतरा रहे हैं. सबकी चाहत यही है कि मैं मर जाऊं. . . . . । उसके मुंह में जो आता कहती चली जाती.
जब भी वह रुष्ट होती. अपने मन की भड़ास निकालने पहुंच जाती पड़ोसन दीपिका के घर. दीपिका एक ऐसी महिला थी जिसे अपने घर की कम पड़ोसियों के घर की चिंता अधिक रहती थी. उसके पास जहां पड़ोसी की बड़ी बूढ़ी सांसे अपनी बहुओं की भर्त्सना करती वहीं बहुएं सास की. दीपिका दोनों पक्षों में साझी बनती. ऐसी पचड़े में रहने की वह आदी हो चुकी थी. उसे उसके पति देवेश ने कई बार ऐसा करने से रोका मगर वह अपनी आदत से बाज नहीं आयी. चुगलखोरी की इस आदत ने उसकी कई से दोस्ती करायी तो कई से दुश्मनी. बिना झमेले में पड़े उसका भोजन नहीं पचता था.
दीपिका में एक खूबी यह थी कि वह पीड़ित को बातों का मरहम तो लगाती साथ ही कभी कभार भोजन भी परोस देती मगर वसूल भी लेती सूद समेत कभी दूध तो कभी शक्कर मांग कर. सुनयना भी कई बार उसके घर भोजन कर चुकी है और सूद समेत उतार भी चुकी है. आज भी सुनयना इसी विश्वास के साथ दीपिका के घर गयी कि दीपिका उसके दुख में सहभागी बनेगी और उसे भोजन परोस देगी. सुनयना को आयी देखकर दीपिका ने खाट डालते हुए कहा - आओ बुआ,आओ बैठो. भोजन तो हो गया होगा ?
खाट पर बैठती सुनयना ने कहा - अरी बहू, मेरी किस्मत ही कहां कि इतनी जल्दी भोजन मिल जाये. मेरी बहू प्रियंका ने समय पर भोजन न देने की कसम खा रखी है. सुनयना ने अपनी बहू की शिकायत कर दी. दीपिका को तो आग लगाने के लिए अवसर मिलना चाहिए था. उसे अवसर मिल गया था. उसने कहा - बारह बज गये, अब तक भोजन नहीं. नास्ता तो किया होगा बुआ ?
- ऊंहूक, नास्ता तो दूर अब तक चाय नहीं मिली है.
सुनयना सफेद झूठ बोल गयी. उसने सोचा था कि दीपिका उसे भोजन के लिए कहेगी. लेकिन वह कहने लगी - बुआ, आपकी बहू बड़ी मुंह चढ़ी औरत है. बूढ़ी और असक्त सास को सताते उसे जरा भी दया नहीं आती. देख लेना बुआ- इसका फल उसे उसके बहू के आने के बाद मिलेगा ही ? मैं तो कामना करती हूं ऐसी बहू किसी और को न मिले. . . . . । उसने बात पल्टी कहा -अरी बुआ, इस मंहगाई के युग का कहना ही क्या ? ऊपर से समय पर वेतन नहीं मिलता. हम पर तो पहाड़ ही टूट पड़ा है. . . . आज बीस तारीख है अब तक वेतन नहीं मिला है. व्यापारी उधारी देने से कतरा रहा है. हाथ तंग है. अमरौती से दस रुपये मांग लाये थे सो सब्जी में ही स्वाहा हो गया. मुझे तो चांवल चटनी के साथ खाना पड़ा. . . . चांवल रखा है. यदि नमक मिर्च की चटनी के साथ खाना हो तो बोलो. परोस देती हूं. . . . . ।
सुनयना कुढ़ गयी. उसके मन में तो आया कह दें - भेड़ बकरी तो नहीं , जो मिला खा लिया.
वह अभी - अभी आलू गोभी की सब्जी छोड़कर आयी थी. उसकी सुगंध अब भी उसके नाक में भरी थी. प्रियंका अगर यह कहती तो सुनयना उसके सिर चढ़ जाती. यह दीपिका थी. मुंहफट महिला. यद्यपि सुनयना चिढ़ गयी थी लेकिन उसने शांत स्वर में कहा - नहीं दीपिका, घर जाकर खा लूंगी. अभी भूख नहीं है. . . ।
- कैसी बातें करती हैं बुआ,सूर्य सीधे हो आये है और आपको भूख नहीं. स्पष्ट क्यों नहीं कहती सूखा भोजन गले के नीचे नहीं उतरेगा.
दीपिका ने व्यंग्य कसा. सुनयना तिलमिला कर रह गयी. कहना तो बहुत कुछ चाहती थी मगर कह नहीं सकी.
अभी कुछ क्षण ही सरका था कि अमित आया. वह वह प्रियंका का पुत्र था. उसने कहा - दादी, मां खाना खाने बुला रही है.
- जा अपनी मां से कहना - पहले वह पेट भर खा ले फिर बच जाए तब मुझे बुलाये.
- दादी, चना चबाओगी. . . . ?
अमित ने चने से भरी मुठ्ठी उसके सामने खोल दी. सुनयना कुढ़ गयी कि यह मेरे पोपले मुंह की हंसी उड़ा रहा है. उसके मन तो एक बार आया कि वह उसके हाथ को मार दे ताकि सारे चने धरती में बिखर जाये लेकिन उसने ऐसा नहीं किया. उसने अमित को गोद में ले लिया. अमित चना चबा चबा कर खाने लगा. सुनयना ने उसके बाल पर हाथ फेरा फिर उसके कोमल गाल को छुआ. उसे उस दिन का स्मरण हो आया. . . . . . . . ।
रसगुल्ले बन रहे थे. उसके सुगंध सुनयना के नाक तक पहुंच रही थी. उसके लार टपक गयी. उसने मन ही मन रसगुल्लों के स्वाद का आनंद लिया पर उसका मन नहीं भरा.
प्रियंका ने उसे भोजन के पूर्व तीन रसगुल्ले दिये. उन्हें सुनयना ने बचा - बचा कर खाया ताकि देर तक यह कार्यक्रम चले. पर तीन रसगुल्ले चले तो कब तक ! उसने फिर प्रियंका से रसगुल्ले मांगे. प्रियंका ने कहा - मां जी, मैंने अधिक नहीं बनाये है.
फिर क्या था सुनयना कुढ़ गयी. उसके सामने दाल भात रोटी परोसी गयी. भोजन छोड़ देने की उसकी इच्छा हुई लेकिन भूख तो लगी थी उसने रोटी खायी और आकर अपने कमरे तें लेट गयी.
उसका दिमाग अब तक रसगुल्लों में अटका था. तीन रसगुल्लों से उसका मन तृप्त नहीं हो पाया था. उसने प्रियंका से पुनः रसगुल्ले मांगने चाहे लेकिन नकारात्मक शब्द सुनने की आशंका ने उसे रोक दिया.
सुनयना कामना करने लगी - प्रियंका कहीं बैठने जाये और वह रसगुल्ले चुराकर खाये . लेकिन प्रियंका अपने काम में व्यस्त थी. रसोई से निकलने का नाम नहीं ले रही थी. कुछ समय बाद वैभव आया. वह उसका पुत्र था. उसे प्रियंका ने भोजन दिया. वह भोजन कर अपने काम पर पुनः चला गया. प्रियंका गृहकार्य से निवृत होकर पड़ोसन के घर चली गयी. सुनयना जिस अवसर की तलाश में था वह सामने खड़ा था. वह शीघ्रता से खाट से जमीन पर उतर आयी. लाठी सम्हाली और अमित को ढूंढ लायी. वह इस कार्य में अमित को सहभागी बनाना चाहती थी. उसने अमित के कान में कुछ कहा जिसे अमित ने स्वीकृति दे दी.
प्रियंका को रसगुल्लों को आलमारी में रख दिया था. अमित ने इधर रसोई मे प्रवेश किया उधर सुनयना अपने कमरे में चली गयी.
अमित रसगुल्लों से भरे बर्तन को उतार ही रहा था कि प्रियंका पहुंच गयी. उसने दरवाजा खुला देखा तो रसोई की ओर लपकी. अमित ने मां को आया देखा तो भय से थर्रथर्र कांपने लगा. भयभीत अमित के हाथ से रसगुल्लों का पात्र धरती पर गिर पड़ा. प्रियंका ने अमित की शरारत को पकड़ ली. उसने अमित को पकड़ा बिना पूछताछ के उसके गाल पर कई थप्पड़ जड़ दिये.
सुनयना भीतर से भयभीत थी कि अमित यह न बता दें कि दादी के कहने पर उसने ऐसा किया. लेकिन रोते सिसकते अमित ने क्या क्या कहा किसी की समझ में नहीं आया. रोते - रोते ही अमित सो गया.
जब नींद से जागा तो अमित सब भूल चुका था. वह मित्रों के संग खेलने लगा. सुनयना ने उसे अपने पास बुलाया. उसके गाल को देखा - थप्पड़ के निशान अब तक शेष थे. अमित पर सुनयना को स्नेह हो आया. उसने साड़ी की पल्लू से एक रुपये का सिक्का निकाला. और अमित की हथेली पर रख दिया. . . . . ।
सुनयना अतीत से निकली. अमित से कहा - चलो बेटा अमित, घर चलें. . . ।
- अरी बुआ, इतनी जल्दी भी क्या है , थोड़ा समय और बैठो न ?
दीपिका ने रोका मगर सुनयना ने लाठी सम्हाली और अपने घर जाने अमित के साथ निकल गयी.
घर में प्रवेश किया तो उसकी बहू प्रियंका ने कहा - आप कहां चली गयी थी. कब से भोजन तैयार है , चलो, बैठ जाओ भोजन करने. . . . ।
सुनयना ने मुंह बिचकाकर कहा - मुझे नहीं करना है भोजन. . . . . ।
प्रियंका फटे कपड़े सीने बैठ गयी. सुनयना अपने कमरे तक आयी. भूख तो लगी थी वह वापस हो गयी. रसोई में गयी. भोजन निकाली और लगी खाने. प्रियंका मुस्करा पड़ी.

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