शनिवार, 16 जुलाई 2016

खत्‍म हुई संकट की घड़ी

सुरेश सर्वेद

       युगांक प्रसन्‍न था.वह प्रसन्‍न हो भी क्‍यों नहीं ? आखिर उसकी नियुक्ति शवदाह गृह में न होकर सफाई दरोगा के पद पर हो गई थी.अब वह शहर के वार्डों में जाता वहां गंदगी होती , उसे सफाई कमर्चारियों से सफाई करवाता.
       प्रति दिनानुसार उस दिन वह वाड क्र.3 में गया.वहां आते ही मोहल्लेे के मधुकर सहित अनेक लोग उस पर टूट पड़े - तुम्हें यहां आने की फूर्सत आज मिली.हमारे वार्ड में कितनी गंदगी फैली है , इसका तुम्हें भान है.जब आंत्रशोध, मलेरिया जैसे संक्रामक रोग फैलेंगे तब जाकर तुम्हारी बुद्धि जागेगी । यहां की गंदगी हटाओ , वरन हम आंदोलन करेंगे ।''
       मधुकर युगांक को उस स्थान पर ले गया, जहां गंदगी का साम्राज्य  था.उसकी सड़ांध से दुर्गंध फैली थी . दुर्गंध सीधी युगांक की नाक में घूसी . युगांक को नाक बंद कर लेनी पड़ी.वह वहां से सीधा कमर्चारियों के पास आया.वह सफाई कमर्चारियों को लेकर उसी स्थान पर उपस्थित हुआ, जहां गंदगी का साम्राज्य था . कमर्चारी भी मानव थे . उन्होंने भी नाक - भौं सिकोड़ना शुरू कर दिया . उन्होंने कहा - यहां की सफाई हमसे नहीं की जाएगी ''.
       एक ओर कर्मचारियों का अस्वीकार था, दूसरी ओर वार्ड के लोग युगांक पर चढ़ाई कर रहे थे। सफाई कर्मचारियों पर दबाव डालने से मामला उलझ सकता था। युगांक ने कर्मचारियों को मना लेना उचित समझा। उसने शराब मंगायी। कर्मचारियों को पिलाई। कर्मचारियों ने शराब की नशे में गंदगी साफ कर दिए। यद्यपि युगांक को अपनी जेब के रुपये खर्चने पड़े थे पर उसे संतुष्टि थी कि उच्चाधिकारियों के पास मेरी शिकायत नहीं हुई। मैंने अपने कार्य तो करवा ही लिया।
       उसने मन ही मन सोचा- क्‍या हुआ मैं गंदगी साफ करवाता हूं.मुझे लासों के तो बीच  नहीं सोना पड़ता .हर हाल में मेरी नौकरी शवदाह गृह की नौकरी से श्रेष्‍ठ हैं .''
       उस दिन नगर निगम के कमर्चारी हड़ताल पर थे . वे वेतन बढ़ाने की मांग कर रहे थे . उन्होंने रैली निकाली.उस रैली में युगांक भी था.रैली शहर के मध्य  पहुंची कि युगांक के पास एक व्यक्ति आया . कहा -  युगांक तुम मेरे साथ चलो ।''
- कहां ... क्यों ? ''
- तुम्हारे घर, तुम्हारे पिताजी की मृत्यु हो गयी है।'' उस व्यक्ति का उत्तर था।
       उत्तर से युगांक को झटका लगा। वह सीधा घर आया। परिवारजन रो रहे थे। युगांक पिता के लाश के पास बैठ गया। पिता के चेहरा को देख वह तड़फ उठा।
       युगांक को पिता के साथ बिताए याद क्षण आने लगे. जब युगांक चार वर्ष का था, तभी मां मर गयी.सारा दायित्व उसके पिता पर आ गया.पिता ने युगांक को कभी मां की कमी का अहसास नहीं होने दिया.युगांक से त्रुटियां हुई पर पिता ने धमकाने या मरने के बजाय  उसे प्रेम से समझाया.रास्ता बताया और आज उसी पिता की मृत्यु हो गयी थी.अर्थी तैयार की गई। उसमें शव रखा गया . युगांक सहित लोगो ने अर्थी को कंधा दिया.युगांक की आंखों से आंसू बहने से थम नहीं रहा था. उसकी आंखें रास्ते भर आसूं बहाती रही . शवदाहगृह के सामने पहुंच  कर उन्होंने अर्थी नीचे उतारा शवदाहगृह का मुख्य  दवार बंद था.युगांक बाजू के छोटे द्वार से भीतर गया.उसकी दृष्टि वहां टंगी एक बोर्ड पर गयी.उसमें लिखा था- कमर्चारी हड़ताल पर है अत: शवदाह का कार्य  बंद है । सूचना पढ़कर युगांक के आसूं सूख गए.सामने नटराजन पुस्तक पढ़ने तल्लीन था. सामने युगांक को देख पूछ बैठा - अरे,युगांक तुम यहां ।''
- हां, मेरे पिता की मृत्यु हो चुकी है। उनकी अंतेष्टि करनी है।''
- आज तो अंतेष्टि का कार्य नहीं हो पायेगा।''
       नटराजन के वाक्य ने युगांक को हिला दिया। पिता के निधन की जो पीड़ा उसे थी वह क्षण भर में ही गायब हो गई। वह तनाव में आ गया कि अब क्या किया जाए ?
       मृतदेह का अंतिम संस्कार करना ही था। युगांक गिड़गिड़ाने लगा। नटराजन ने कहा - मैं तुम्हारी पीड़ा समझ सकता हूं। तुम मेरी विवशता समझने का प्रयास करो। मुझे भी तुम्हारे पिता की मृत्यु का उतना ही दुख है जितना कि तुम्हें। पर मैं तुम्हारी सहायता करने में असमर्थ हूं। तुम तो जानते ही हो यदि मैं भावना में आकर तुम्हारा सहयोग किया तो कर्मचारी संघ के लोग मुझ पर चढ़ाई कर देंगे।''
       युगांक जिस पद को हेयदृष्टि  से देखता था उसके अधिकार को देख उसे श्रेष्‍ठ समझने लगा.समस्याएं दोनो ओर थी यदि नटराजन शवदहन करने देता तो संघ के लोग उसकी बारा बजाते ,और युगांक पिता की लाश को वापस नहीं ले जा सकता था.
       अनुनय  - विनय  का नटराजन पर कोई असर नहीं दिखा,युगांक के पास एक ही चारा था वह अनुनय  -विनय  के स्थान पर नटराजन को पटा ले .उसने नटराजन की जेब में रूपए  ढ़ूंस दिए .नटराजन का अटल निश्चय  डगमगा गया.उसने गंभीरता धारण कर ली.कहा- वास्तव में नियम - कानून आदमी को अपाहिज बना देता है .वह सहायता की इच्छा रखकर भी कुछ नहीं कर पाता.पर अब मुझे  किसी का भय  नहीं .मैंं तुम्हारी सहायता अवश्य  करूंगा लेकिन एक समस्या हैं ..... ।''
- क्‍या समस्या.....? '' युगांक ने पूछा.
- हड़ताल के कारण शासकीय  लकड़ियां उपलबध नहीं है .हां,मैने अपने लिए रखी है .उसे दे सकता हूं.लेकिन कीमत अधिक  लगेगी .''
       युगांक को खर्च करने की चिंता नहीं थी.उसकी प्रमुख चिंता - पिता की चीता थी . वह लकड़ियों की बढ़ी कीमत चुकाने तैयार हो गया.
       नटराजन ने बड़ी दरवाजा खोल दिया.अर्थी भीतर आयी.उसकी अंतिम संस्‍कार कर दी गई.युगांक लौटने लगा तो नटराजन ने उसे पास बुलाकर कहा - इस क्रिया - कर्म के रहस्य  को कहीं मत खोलना वरना हम दोनो पचड़े में पड़  जाएंगे .
       युगांक को कहीं बताने की क्‍या पड़ी थी.उसे मानसिक तनाव से जुझना पड़ा . आर्थिक हानि उठानी पड़ी पर उसे आंतरिक प्रसन्‍नता थी कि पिता का अंतिम संस्‍कार हो तो गया .उसे वापस ले जाने की नौबत तो नहीं आयी.

पता
ममता नगर
राजनांदगांव

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