रविवार, 10 जनवरी 2016

गउ हतिया

सुरेश सर्वेद

            ननकी कभू सोचे नई रिहीस के ओकर ऊपर अतका बड़े जान पाप थोप दे जाही। अंधियार कोठा म बइठे रिहीस ओहा। कोठा के अंधियारा ले जादा ओला अपन अंतस म अंधियार लगत रिहीस हे। ये अंधियारा ओला लीलत रिहीस। ओकर मन म विचार उठत रिहीस – का सेवा के आइसने परिनाम निकलथे ? का ओहर ओकर हतिया कर सकत हे जेकर ले ओला अपन जान ले जादा लगाव रिहीस हे ? का ओहर अपन सबले प्रिय ल ही अपन से दूरिहा करे के पाप कर सकत हे ? अइसन प्रश्न ओकर दीमाक म कुलबुलात रिहीस हे, ऐकर उत्तर खोजे के परियास करिस पर खोज नइ पाइस।
            ननकी ये बात म विश्वास नई करत रिहीस हे के जउन समाज परिवार के मुंहू ओकर गउ सेवा के प्रसंसा करत नई पिरावै उही परिवार अउ समाज ओकर ऊपर गउ हतिया के आरोप लगाही, ओला हिकारत के नजरिया से देखही। दूसर के बात का करबे ओकर पत्नी – रमसीला, ओ पत्नी जउन सात फेरा आगी के आगू म ले रिहीस अउ सात जनम तक संग म सुख दुख बांटे के कसम किरीया खाय रिहीस उहू हर दोस मढ़े बर नई चुकत रिहीस। जब खुदे के छइंहा संग छोड़ देही त आदमी करही त करही का ? ओकर छइहां रिहीस रमशीला। उहू हर ओकर संग दे के बदला ओकर खिलाफत म चले गे रिहीस। गाय के मरे के जिम्मा ननकी ऊपर थोपे ले नई चुकत रिहीस। ननकी करे त करै का ? ओकर हिस्सा म तो परिवार – समाज हर पश्चाताप सउंप दे रिहीन। ओहर प्रतिकार घलोक नइ कर सकै। ओकर सुनने वाला कोनो नई रिहीन। एक झन भी ओकर संग देतीस त ओहर प्रतिकार करे के या फेर अपन सफई दे के साहस करतीस पर इहां सब के सब ओकर काम ल घिनौना बताये बर, प्रमाणित करे कर चूकत नई रिहीन।
            अंधियार कोठा म ओला गुढ़ी चंउरा म सकलाये गांव वाले के चेहरा दिखे लगे रिहीस। बइसका म सकलाये लोगन मन के आवाज सुनाई दे लगे रिहीस। गांव के अइसन – अइसन लोगन मन बइसका म सकलाये रिहीन जउन मन ल गांव के बइसका से कभू कोई मतलब नई रहै। बइसका म सकलाये गांव वाले मन ओकर ऊपर गउ हतिया के दोस मढ़े बर कोताही नइ बरतत रिहीन अउ ओकर ऊपर घृणित नजर डारे ले बाज नई आवत रिहीन।
            गुड़ी चंउरा के जुरे बइसका म दोनो पक्ष अपन – अपन बात ल रखिन। राम्हू किहीस – ननकी गउ प्रेमी आवै मगर ओकर करम से अइसन लगथे ऐकर गउ प्रेम सिरफ देखावा अउ छलावा आवै। मोला लगथे ननकी जउन परकार के करम करे हे ओहर गउ हतिया ही हे, बाकी पंचाइत के निरनय …।
           अवसर मिले रिहीस त जगनू घलोक बोले बर काबर चूकतीस। ओला ओ दिन के सुरता आ गे जब ओकर गाय ननकी के खेत म खुसर के फसल ल चर दे रिहीस। ननकी हर गाय ल खेत ले हंकाल के जगनू ल केहे रिहीस – देख जगनू जब तब तोर जानवर मन खेत म खुसर के फसल ल बरबाद कर देथे। तंय ऐला अपन घर म बांध के रख या फेर बरदीहा ल चेता दे – गाय बरदी छोडक़े झन भागे नई तो बिवस हो के मोला तोर जानवर मन ल कांजी हाउस ले जाना परही।
            जगनू के जानवर मन भागोड़ा रिहीन। बरदी ले कतका बेर छिटक के खिसके बरदीहा घलोक गम नई पाय। जब बरदीहा गम नई पात रिहीस त ओला पता कइसे चलतीस के जगनू के जानवर बरदी ले छंट गे। एक – दू बार जगनू हर बरदीहा ल चेताय के परियास करे रिहीस। तब बरदीहा के जुवाब रिहीस – गांव भर के जानवर एक डहर त तोर जानवर एक डहर। मिलखी मारते बरदी ले खिसक जाथै। बरदी म लाय बर दउड़ो त हाथ नइ आवै। अब तहीं बता तोरे जानवर के पाछू दिन भर भागहू त दूसर के जानवर ल कोन चराही। मोर सलाह हे – तंय अपन जानवर मन ल कोठा म बांध के रख।
            बरदीहा के बात सुन के जगनू तिलमिला के रिहीस। पर करे त करे का ? ओकर एक जानवर के अइसन हाल होतिस त घर म बांध के रख लेतिस मगर ओकर मेर दू बइला, दो गाय अइसे चार जानवर रिहीन। ये मन ल ओहर घर म बांध के रखतीस त रखतीस कइसे। चार जानवर के हाल ये रिहीस के एक भी अइसन नई रिहीस जउन दिन भर बरदी म रहै। ओमन बरदी ले एक एक करके अइसे खिसके जइसे आपस म सुंता होय रहय होही। ननकी के भासा अउ कई गांव वाले मन जगनू ल कही डर रिहीन। जगनू ल आय दिन जानवर मन के सेती ककरो न ककरो सुनेच ल परे। आज ओला सुनाये के अवसर मिले रिहीस। ओहर किहिस – राम्हू के कहिना गलत नई हे। वास्तव म यदि ननकी के मन म जानवर के प्रति प्रेम होतिस त मोला नई कहितीस के तंय अपन जानवर मन ल घर म बांध के रख नई ते कांजी हाउस म ओइला देहूं। मोर तो कहीना हे – ननकी के अपराध ल सामान्य अपराध न माने जावै। ननकी ल कड़ा दण्ड दे जावे। मोला तो लगथे ननकी जान सुन के गाय ल अतेक जोर से धकेल दीस होही के गाय के परान पखेरु गिरते सांठ उड़ा गे।
            जगनू के बात ननकी ल चुभ गीस पर चार समाज के बीच अपन सफई दे त दे कैसे ? ओकर बाई जउन ओकर संगेसंग चलने वाली रिहीस। उहू आज पंचाइत म ओकर बिरोध म चल दे रिहीस। अइसन म ओकर सफई के असर समाज म होतिस ये बात नई रिहीस। ओहर मुड़ न नवा के पंचाइत म किहीस – मंय अपन सफई म का काहौ ? कहहूं भी तो काबर ? पंचाइत मोर सफई म धियान देही अइसन नई लागै। पंच परमेश्वर इहां सकलाय हे। जउन निरनय करही, मोला स्वीकार हे …।
           पंचाइत म जुरे लोगन मन के बीच कानाफुंसी होइस। निरनय सुनाय खातिर आपस म सुलह होइन। पंचाइत अपन निरनय सुनावत किहीस – भले ही ननकी से ये अपराध अनजाने में होइस होही। पर अपराध तो अपराध आवै। समाज म गउ हतिया के प्रवृत्ति दिन दिन बाढ़ते जात हे। मूक पशु मन के प्रति संवेदना मरते जावत हे। अपन पालतु पशु मन ल जेन माहौल म बांध के रखथन ओहर कतेक अमानवीय, क्रूर और पीरा दायक होथे ऐकर अहसास हमू ल होना चाही। पालतु पशु मन के प्रति हमरो मन म संवेदना जागना चाही। ननकी ले जउन अपराध होय हवै ओहर गउ हतिया ले कम नई। गउ हतिया ल हमर समाज महापाप माने हे अउ ऐकर प्रायश्चित के हल घलोक निकाले हे। ननकी ल एकाइस दिन उही कोठा म काटे ल परही जिंहा ऐकर गाय बंधात रिहीस। ये एकाइस दिन म न ननकी कोठा ले बाहिर आ सके अउ न ही कोनो कोठा म जा सके। हां, ओकर बाई ह समय म जेवन परोसही उहू हर परदा म। ये बीच म जउ कोई ननकी ल देखही उहू दण्ड के भागीदार होही चाहे ये मा ओकर बाई रमसीला ही काबर न होय।
            पंचाइत के निरनय बाद ओला कोठा म धकेल दे गीस। उहां ननकी ल ओ दिन के सुरता आये लगीस जब मालती ल ओहर पहली बार अपन कोठा म ल के बांधे रिहीस। मालती ल जब बिसाये बर सरजू के पास गीस त उहां सरजू के मरजी चलीस। ओकर दाम म मालती ल बिसाये ल परिस। मालती ल लेके जब ननकी घर अइस त रमसीला खुशी के मारे फुल गे। उहू चाहत रिहीस के ओकर घर एक ठन गाय होवै। गाभीन होवै अउ बछरु जनमे। घर के ही दूध, दही, मही, घीव खाये ल मिलै। जाने ओ कोठा कब के बीरान परे रिहीस। जब मालती पहली बार बिहा के अइस तब कोठा म एक मरही – खुरही गाय बंधाये रिहीस, कुछ दिन बाद ओहर अपन परान ल तियाग दीस। तब ले कोठा डहर झांक के देखे के फुरसत ककरो मेर नई रिहीस। अब मालती आ गे रिहीस। पहिली ओला अंगना म बांधे गीस फेर कोठा के साफ सफई कर उहां बांध दे गीस।
            मालती के सेवा जतन म कभू रमसीला चुकत रिहीस न कभू ननकी। समय म दाना पानी मिलते गीस। मालती फुनाते गीस। दिन सरकिस अउ एक दिन उहू अइस जब मालती गाभिन हो गे। ओ दिन रमसीला के संग संगे ननकी के खुशी के का कहिना। मालती हर समय म एक सुन्दर स्वस्थ बछवा ल जनम दीस। अब तो मालती के देखरेख अउ सेवा जतन अउ बाढ़ गे। मालती दूध दे लगीस। दूध के संगे संग दही, मही अउ घी के सुवाद चखे ल मिले लगीस।
            ननकी खेती – किसानी ले थक मांद के आवै। रमसीला ओला जेवन परोस दे जे बर चिल्लावत रहै पर ननकी मालती के पीला संग खेले ल लग जावै। फेर मालती बर कोठा म कांदी डारे ल चल देवै। रमशीला कहत रही जावै – मालती संझा कुन बरदी ले लहूटही उहू म कांदी चर के फेर अतेक जल्दी काबर ? पहिली तुमन जे लव फेर कांदी डारत रहीना मालती बर। ननकी कोठा ले चिल्ला के रमसीला से कहै – तोर से एको काम नई होवावै। कोठा ल देख तो कतेक चिखला माते हे। मोला लगथे तोर जरा भी धियान कोठा के साफ – सफई म नई जावै। रमसीला ताना मारे। कहै – ठीक हे .. ठीक हे, पहिली जे लो फेर खुदे कोठा के साफ सफई कर लेना। जेवन के तुरते बाद ननकी कोठा म बाहरी धर के घुसर जावै अउ सफई करे लगे पर काला साफा करतीस। उहां चिखला माटी राहय तब न ? पूरा साफ – सफाई के काम तो रमशीला निपटा डरे रहै। ननकी जइसे जाय रहै वइसने लहुट जावै, बाहरी ल धर के।
            जिंहा बिहिनिया संझा कांदी दे के जवाबदारी ननकी पर रिहीस उहीं गोबर उठाये अउ कोठा ल साफ – सफई करे म रमसीला जरा भी आलस नई देखात रिहीस। रात म जब ननकी सोवै त मालती के बछरु ल अपन खटिया के खुरा म बांध के राखै। रात भर ओहा जतका आरो बछरु के लेवय ओतके आरो मालती के लेवत रहै। जब – जब रात म ओकर नींद उजरे ओहर एक नजर कोठा म बंधाये मालती ल जरुर देखतीस। वोला सुकून मिलय कि मालती पगुरावत आराम करत हवै। बिहिनिया होते सांठ बरदिहा पहुंच जावै। बरदिहा के आवै के भनक बछरु ल लग जावै। ओहर हम्मा – हम्मा चिल्लावन लागै। कोठा म बंधाये मालती तक आवाज पहुंचे। बरदिहा बछरु ल खोल देवै। बछरु दउड़ के अपन महतारी मेर पहुंच दूध पनपाय बर थन ल चुसे लगे। कुछ देर बाद बरदिहा बछरु ल मालती ले दूरिहा कर दे अउ कसेली भर दूध दूहू के बछरु ल छोड़ देवै। बछरु महतारी के दूध पीये लगे।
            ननकी कभू सोचे भी नई रिहीस के गउ सेवा के ओला अतेक बड़ सजा मिलही। पर अब करतीस त करतीस का ? ओकर ऊपर गउ हतिया के कलंक लग गे रिहीस अउ पंचाइत इककाइस दिन बंद कुलूप कोठा म बिताये के निरनय दे दे रिहीस। ननकी जइसे कोठा म घुसरिस, ओला मालती दिखे लगीस। ओला लगे लगीस – मालती मरे नई, जिंदा हे। पर सच्चाई इही रिहीस के मालती ये दुनिया ल छोड़ के परलोक सिधार चुके रिहीस। ननकी ल ये बात के पश्चाताप रिहीस के जब मालती के खुर से ओकर पांव दब गे तब हकाल के दूरिहा कर देना रिहीस। धक्का नई मारना रिहीस। ओहर धकेलिस तेकरे सेती मालती गिरगे अउ ओकर प्रान निकल गे। इककाइस दिन कोठा म काटना ओकर बर कठिन परिछा रिहीस। इककाइस दिन … पूरा इककाइस दिन। ओला इककाइस जनम के बरोबर लगे लगीस। बाहिर बछरु के हम्मा – हम्मा ओकर करेजा ल चीरे असन लगे। ओकर मन होवत रिहीस – जाके बछरु ल गला लगा ले। ओला दुलारे – पुचकारे। पर इहां कहां संभव रिहीस। कोठा से निकलना तो दूरिहा के रिहीस, कोठा म दूसर के खुसरना घलोक मना रिहीस। रमसीला बाहिर ले कोठा के भीतर जेवन के थारी ल धकेल दे। दू – तीन दिन ननकी से जेवन करे नई गीस पर भूखे पेट रहतीस त कब तक अभी तो ओला पूरा इकाइस दिन काटना रिहीस।
            समय निकलत गीस। दिन के गिनती होते गीस। एक … दू … तीन … बीस … पूरा बीस दिन होगीस ननकी ल अंधियार कोठा म कैद होवै। ओहर उजियारा के तलास म रिहीस। बाहिर के उजियारा नइ ओला ओ उजियारा के तलास रिहीस जउ उजियारा ओला इककाइस दिन बाद अपन करम के पश्चाताप के बाद मिलना रिहीस। पाप धोवै के बाद मिलइया उजियारा के। बीसवां दिन अउ बीसवां रात के आखिर पहर म ओकर नींद उजर गे। ओला लगे लगीस – इहीं कहीं मालती ठाढ़े हे अउ अपन गोसइया के दुर्दशा ल देख के बिकट दुखी हवै। ओकर आंखी म आंसू हवै अउ ननकी ओ आंसू ल पोंछे के परयास करे के बाद भी नई पोंछ पावत हवै।
           सूरुज उगे म अभी थोरिक देरी रिहीस। ननकी के कान तक मालती के बछरु के आवाज अइस। रमसीला अंगना ल बाहरत रिहीस। अचानक मालती के बछरु हर गला म बंधाये गेरवा ल तोर दीस। रमसीला ओला धरना चाहीस। रमसीला ओला धर पातीस ओकर पहिली बछरु हर कोठा के कपाट ल पेल के कोठा म घुसर गे। ओहर ननकी के तीर म जाके खड़ा होगे अउ ननकी ल चांटे लगीस। ननकी ल लगीस – ओकर सारा पाप धोवा गे। ओकर आंखी छलछला गे। ननकी बछरु ल पोटार लीस। ननकी ल लगीस – ओहर अनजाने म जउन अपराध करे रिहीस, ओकर सजा भोग डरिस। ओकर मन म जउन अपराध भाव रिहीस ओहर खतम होगे। ओकर ऊपर पोते कालिख बिहिनिया के उजियारा के संग मिटा गे। अब अंगना भर सूरज के उजियारा बिगर गे रिहीस।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें