गुरुवार, 7 जनवरी 2016

वसुन्‍धरा


सुरेश सर्वेद

          हरनारायण की चाहत थी - उसके घर भी एक गाय हो. इस चाहत को पूरा करने वह उसके घर पहुंच जाता जो गाय बेचने के इच्छुक होता. दुर्भाग्य-वह जब पहुंचता गाय बिक चुकी होती. वह हताश- निराश घर लौट आता. गाय पालने की ललक उसमें इतनी थी कि वह कैसी भी गाय खरीदने को तैयार था. उसे खबर लगी-हर्षित अपनी बछिया बेचने वाला है . एक बार उसकी आंखों के सामने बछिया झलक गयी. उसकी हड्डियां शरीर से निकल आयी थी. आंखें धंस गयी थी. दो- चार कदम चलने के बाद वह बैठ जाती . कमजोर बछिया की झलक ने उसे रोकने का प्रयास किया मगर उसमें गाय पालने की ललक थी. वह हर्षित के घर जा पहुंचा. उसने सोचा - बछिया अभी बच्ची है. भरपेट दानापानी मिलेगा सही देखरेख होगी तो उसका शरीर भर जाएगा. उसने सौदा किया और बछिया को अपने घर ले आया. उसने उसका नाम वसुन्धरा रख दिया.
          हरनारायण प्रातः से ही उसकी देखरेख में लग जाता. उसकी सेवा जतन का ही परिणाम था कि वसुन्धरा का शरीर समय के पूर्व भर गया. वह बछिया से गाय बन गयी. अब वसुन्धरा को देखकर यह नहीं लगता था कि यह वही बछिया है जिसे हरनारायण ,हर्षित से खरीद कर लाया था. एक दिन हरनारायण ने देखा -वसुन्धरा के पीछे तीन-चार सांड पड़े हैं. हरनारायण प्रसन्नता से खिल उठा. उस दिन से वसुन्धरा की सेवा- जतन और अधिक होने लगी.
          उन दिनों गांव में गलघोंटू रोग का प्रकोप था.इस रोग ने कई पशुओं की जान ले ली थी जब जब कोई पशु इस रोग का शिकार हुआ , हरनारायण को भय सताने लगा.यहां तक कि उसने उस रात सपने में भी वसुन्धरा को इस रोग से ग्रसित हो छटपटाते देखा.उसने देखा- वसुन्धरा तेज बुखार से तड़प रही है.वह लहक रही है.उसके गले में सूजन आ गयी है.थूंक निगलना भी उसके लिए मुश्किल हो गया है.सामने हरी- हरी घास पड़ी है पर वह खा नहीं पा रही है.उसके घर पशुचिकित्सक आ गया है पर उसने भी प्रयास करके वसुन्धरा को नहीं बचा सका. हरनारायण ,वसुन्धरा से लिपट गया. वह दहाड़ मार कर रो पड़ा.....।
          अचानक हरनारायण की नींद टूट गयी. कुछ क्षण वह असमंजस में पड़ा रहा. हरनारायण दबे पांव वसुन्धरा के पास गया . वसुन्धरा आँखे बंद किए कुछ चबुला रही थी. हरनारायण का स्नेह वसुन्धरा के प्रति जाग गया. वह वसुन्धरा पर स्नेह का हाथ फेरना चाहा ,पर ऐसा नहीं कर सका उसे लगा ,स्पर्श से वसुन्धरा की आँख खुल जाएगी ,उसकी नींद उजड़ जाएगी. वह चुपचाप लौट गया.
          वसुन्धरा गर्भ से थी. हरनारायण चाहता था- पेट में पल रहा बच्चा ह्ष्ट- पुष्ट हो . वह चुनी खली खरीदने शहर गया. उस दिन वसुन्धरा की देख रेख की जिम्मेदारी उसकी पत्नी कल्याणी पर आ गयी. कल्याणी गृह कार्य में लगी थी. उसकी पुत्री प्रियंका ,वसुन्धरा के पास जा पहुंची. वसुन्धरा बैठी थी . प्रियंका ने उसकी पूंछ पकड़ी . वसुन्धरा रटपटा कर उठ खड़ी हुई. प्रियंका उसके सिर के पास आ गई. उसने वसुन्धरा के कान पकड़ ली. अपनी ओर खींची. वसुन्धरा ने धीरे से सिर हिलाया. प्रियंका के हाथ से उसका कान छूट गया. प्रियंका ने पुनः प्रयास करके उसके कान पकड़ ली. वसुन्धरा ने पुनः सिर हिलाया. कान फिर छूट गया. इस खेल में दोनों को मजा आ रहा था. अचानक वसुन्धरा के खुर में प्रियंका का पैर आ गया. प्रियंका चित्कार मार कर चीख पड़ी. वसुन्धरा को अपनी गलती का ज्ञान हो गया . उसने झट अपना पैर उठा लिया.
           प्रियंका की कारुणिक आवाज कल्याणी तक पहुंची. वह दौड़ कर आयी. वह प्रियंका के पैर में खुर का चिन्ह देख कर तड़प उठी. प्रियंका को उठा. वसुन्धरा को गालियां देती घर के भीतर चली गई. वसुन्धरा को अन्जाने में हुई गलती का दण्ड मिला. उसे दिन भर भूखा- प्यासा रहना पड़ा.
          हरनारायण शहर से लौटा. वह वसुन्धरा के पास गया. वसुन्धरा गुमसुम बैठी थी. हरनारायण को देख वह उठ खड़ी हुई. हरनारायण ने देखा-वसुन्धरा के पास न खाने को घास है न पीने का पानी. उसने पत्नी कल्याणी को आवाज दी. कल्याणी आयी. आते ही कहने लगी-आज इसने प्रियंका के पैर को कुचल दिया. हरनारायण समझ गया-कारण यही था,वसुन्धरा के पास घास और पानी नहीं होने का . वह विवाद नहीं चाहता था. स्वयं घास लाकर उसने वसुन्धरा के सामने डाल दिया. वसुन्धरा भूखी- प्यासी तो थी ही वह घास खाने लगी.
          कुछ दिन बाद वसुन्धरा का प्रसव - पीड़ा उठी. उसने ह्ष्ट-पुष्ट और स्वस्थ बछड़े को जन्म दिया. बछड़ा के जन्म लेतें ही वसुन्धरा उसे चांटने लगी. बछड़ा खड़ा होने का प्रयास करने लगा. कल्याणी सूपे भर धान भर लाई. उसे वसुन्धरा के सामने रख दी. वसुन्धरा धान खाने लगी.
          अब हरनारायण के घर दूध होता,पति-पत्नी और प्रियंका छकते तक पीते. बचा हुआ दूध कल्याणी जमा देती. जिससे दही बनता . कल्याणी बिलोकर उससे लेवना निकालती,उसका घी बनाती. मठा पड़ोसियों में बाँट देती.
          प्रति संध्या हरनारायण ,वसुन्धरा की प्रतीक्षा करता . वसुन्धरा बाहर से चर कर आती फिर भी हरनारायण उसे दानापानी देने उतावला रहता. प्रतिदिनानुसार उस दिन भी वह वसुन्धरा का इंतजार कर रहा था बर्दी के सभी पशु अपने -अपने घर में आ गए थे पर वसुन्धरा अभी तक नहीं आई थी. हरनारायण हड़बड़ाया. वह बरदिहा रामेश्वर के घर गया. पूछा- वसुन्धरा अब तक नहीं आई है .
- कैसी बातें करते हो . उसने मेरी आंखों के सामने गांव में प्रवेश किया. 
          रामेश्वर का कहना सत्य था. वसुन्धरा उस समय छँट गयी,जब रामेश्वर बर्दी से अलग हो भाग रही गाय को रोकने दौड़ा. जब रामेश्वर उस गाय को रोककर लाया तब तक अनेक पशु घरों में घुस चूके थे . रामेश्वर ने सोचा- वसुन्धरा भी अपने घर चली गई होगी मगर यहां तो वसुन्धरा के घर नहीं पहुंचने की खबर मिल रही थी. रामेश्वर, हरनारायण के साथ आस पास के खेतों को खोजा. वसुन्धरा का कहीं पता नहीं चला.
          हरनारायण घर पहुंचा. पत्नी कल्याणी पूछ बैठी- वसुन्धरा का पता चला ?
-नहीं. . . . . । हरनारायण का उत्तर था.
          उस रात हरनारायण को नींद नहीं आयी. बछड़े को भूसा पैरा खाना पड़ा. मां का दूध नहीं मिल पाया था. वह भी रात भर चिल्लाता रहा. जैसे-जैसे बछड़ा चिल्लाता,हरनारायण को वसुन्धरा पर खीझ होती. वह बड़बड़ा उठता-उस कलंकिनी को बच्चे की भी याद नहीं आई. हरनारायण बछड़े को अपने पास ही बांध रखा था. वह उसे सहलाने लगा-चुप बेटा,चुप. रात भर निकाल ले . उसे सुबह खोज लाऊंगा.
           बछड़े को सांत्वना नहीं मां चाहिए था. उस रात न हरनारायण सो पाया न ही बछड़ा. जरा सी आहट होती . हरनारायण दरवाजा खोलकर देखता. हर आहट में उसे वसुन्धरा के आने का भान होता.
          दूसरे दिन प्रातः होते ही हरनारायण ,वसुन्धरा की खोज में निकल गया. सारा दिन आसपास के गाँवों में ,खेत खार में खोजता रहा . संध्या तक खाली हाथ थके हारे लौट आया. अब हरनारायण का ध्यान ज्योतिष की ओर गया. गांव के देवी- देवताओ ं का स्मरण किया. मनौतियां मनायी . जिसने ,जिस दिशा को सुझाया,वह उधर ही दौड़ा. पांच दिन - रात एक करने पर भी वसुन्धरा नहीं मिली.
          उस रात हरनारायण थककर सो रहा था कि अचानक उसकी नींद खुल गयी बाहर की आवाज को सुनकर . उसके कान में पदचाप की आवाज आ रही थी उसे लग रहा था कि बाहर कोई पशु खड़ा कुछ चबुला रहा है. उसे लगा कि बाहर वसुन्धरा ही खड़ी होगी मगर वह थककर इतना चूर हो चुका था कि उसमें खाट से उतरने की भी शक्ति नहीं रह गयी थी मगर उससे रहा नहीं गया. वह खाट से नीचे उतरा. सोचा-यदि सचमुच वसुन्धरा ही होगी तो . . उसने बड़बड़ाया- पहले तो दो-तीन डंडे लगाऊंगा फिर भीतर लाऊंगा. वह बाहर आया. वास्तव में बाहर वसुन्धरा ही खड़ी थी. उसने सोचा तो था कि वसुन्धरा होगी तो दो-तीन लाठी लगाऊंगा मगर सामने वसुन्धरा को पाकर उसका यह विचार भरभरा गया. उसमें हड़बड़ी मच गयी कि कितनी जल्दी वसुन्धरा को घर के भीतर ले जाएं. उसने वसुन्धरा को भीतर की ओर धकेला. उसकी पत्नी कल्याणी भी जाग चुकी थी. वह वसुन्धरा को दाना पानी देने में पति का सहयोग करने लगी.
          वसुन्धरा का ध्यान दाना-पानी पर नहीं लग रहा था. उसका ध्यान बछड़े की ओर दौड़ रहा था. बछड़े को माँ के आगमन का भान हो चुका था वह हम्मा- हम्मा चिल्लाने लगा. वसुन्धरा का ममत्व उमड़ पड़ा. वह भी चिल्लाने लगी. हरनारायण ने बछड़े को खोल दिया बछड़ा मां के पास पहुंचा भी नहीं था कि वसुन्धरा के स्तन से दूध की धारा फूट पड़ी. बछड़ा दौड़कर मां के पास आया. वह स्तनपान करने लगा. वसुन्धरा,बछड़े को चाटने लगी.
          समय चक्र क्रियाशील था. वसुन्धरा वृद्धावस्था में पहुंच चुकी थी. बछड़ा जवानी में कदम रख चुका था. हरनारायण उसकी जोड़ी भरना चाहता था. हरनारायण ने एक बैल खरीद लाया. वसुन्धरा के पुत्र के साथ उसकी जोड़ी अच्छी जमी. हरनारायण उन्हें खेत में लेकर गया. वापस आया तो कल्याणी से कहा-वसुन्धरा के पुत्र ने तो कमाल ही कर दिखाया. इसकी कार्यक्षमता तीव्र है. हम जिस खेत को दो दिन में जोतते थे इसने एक ही दिन में जोत दिखाया.
           हरनारायण की आवाज वसुन्धरा तक पहुंची. उसका छाती गर्व से फूल गयी वह मन ही मन बड़बड़ा उठी-आखिर पुत्र किसका है ? उसका ध्यान अपनी स्थिति पर गया. उसे पीड़ा हुई. अब उसकी शारीरिक शक्ति क्षीण हो चुकी थी. चार कदम चलती कि हांफने लग जाती . मुंह से झाग निकलने लग जाता. शारीरिक अक्षमता ने उसकी पाचन शक्ति छीन ली थी. वह लालच में आकर यदि अधिक घास खा जाती तो पतला दस्त हो जाता.
          वसुन्धरा का ध्यान अतीत में भटक गया. तब वह जवान थी. और बर्दी से छंट गयी थी. . . . . वसुन्धरा हरी-हरी घास चरती आगे बढ़ती गयी. घास चरने की धुन में कब जंगल पहुंच गयी,उसे इसका भी ज्ञान नहीं रहा. वसुन्धरा रास्ता भटक गयी. वह रास्ता ढूंढती रही मगर उसका साक्षात्कार पहाड़ और चट्टानों से ही होता रहा.
          वसुन्धरा भटक रही थी कि उसने एक शेर को अपनी ओर आते देखा. मृत्यु से साक्षात्कार हो रहा था. वसुन्धरा भयभीत हो गई. वह भय से सिहरती कि उसमें विचार उठा-यदि मैं डर कर भागती हूं तो शेर मुझे जीवित नहीं छोड़ेगा. मरना तो है ही फिर डर कर क्यों भागूं ? उसने साहस एकत्रित किया. वह तनकर खड़ी हो गयी. उसकी आंखें शेर पर जा टिकी . यह प्रतिस्पर्धा का स्पष्ट संकेत था. शेर ने वसुन्धरा का रुप देखा तो वसुन्धरा पर हमला करने की शक्ति खो बैठा. वह चुपचाप आगे बढ़ गया.
          यद्यपि शेर आगे बढ़ गया था पर वसुन्धरा ने अपनी हिम्मत मजबूत बनाये रखा. ध्यान को चौकस रखकर वह आगे बढ़ गयी. उसे भय था -शेर पीछे से वार न कर दे . वह बहुत दूर निकल गयी पर भी शेर ने आक्रमण नहीं किया. तब उसने अपना शरीर को शनैःशनै सामान्य बनाया. वह पुनः घर का रास्ता ढूंढने लगी. एक सप्ताह बाद ही वह घर का रास्ता पा सकी.
          पूर्व की यादों से वसुन्धरा बाहर आयी. उसने अपने पुत्र की ओर देखा. उसे प्रसन्नता हुई कि उसका पुत्र कर्मवीर है न कि कामचोर.
           गाँव में भूपत आया था. हरनारायण उसके पास ,वसुन्धरा को बेच देना चाहता था. उसमें विचार कौंधा-वसुन्धरा ने हमें दूध दिया. घी दिया, एक कमाऊ पुत दिया . स्वार्थ वश कुछ रुपयों के लिए क्या वसुन्धरा को बेचना उचित है ? 
उसने वसुन्धरा को बेचने का विचार त्याग दिया.

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