गुरुवार, 7 जनवरी 2016

दयामृत्‍यु

सुरेश सर्वेद

          स्कड प्रक्षेपास्त्रों को आकाश में ही नष्ट करने पैट्रियड का अविष्कार हो चुका हैं पर तार पेट्रोल और बेल्ट बम धड़ल्ले से प्रयुक्त हो रहे है. आतंकी अपनी कमर में बेल्ट बम बांध कर जाता है और बटन दबाकर विस्फोट कर देता है. इससे लाशें बिछ जातीं हैं. यद्यपि मेटल डिटेक्टर बमों की उपस्थिति की जानकारी देता है पर उन्हें तत्काल नष्ट नहीं कर पाता. इसी विषय को लेकर वैज्ञानिकों की ‘ विज्ञान भवन ‘ में बैठक थी. वहां आकाश और नीलमणी भी उपस्थित थे. नीलमणी ने अपनी बात रखी - ‘ मित्रों,हम एक ऐसे बम का निर्माण करें कि बमों की उपस्थिति का पता तो लगे साथ ही वे तत्काल निष्क्रिय भी हो जाये. साथ ही अपराधी की पहचान भी बता दें. . . . ।‘
          वैज्ञानिक गंभीरता पूर्वक विचार कर ही रहे थे पर उन्हें प्रश्न का उत्तर नहीं मिल रहा था . उधर आकाश के ओंठो पर मुस्कान थी. दरअसल उसने पूर्व में ही इस विषय पर विचार किया और उसने ‘सेफ्टी लाइफ‘ नामक यंत्र बनाने का काम भी प्रारंभ कर दिया. इस यंत्र में उपरोक्त चिंतन के समस्त उत्तर समाहित थे. आकाश ‘सेफ्टी लाइफ‘ बनने के बाद वैज्ञानिकों को हतप्रभ करना चाहता था इसलिए उसने अपने अनुसंधान की चर्चा अब तक कहीं नहीं की थी. अभी वैज्ञानिक चिंतन कर ही रहे थे कि एक धमाका हुआ. दरअसल प्रणव उच्‍च शिक्षा प्राप्त युवक था. वह शासकीय सेवा में नहीं था. उसने कई विषयों पर वैज्ञानिक द्य्ष्टि से शोध किया था. उसने अपनी उपलब्धियों का प्रदर्शन करना चाहा पर उसकी बातों को सबने हंसी में उड़ा दिया. संवादहीनता और उपेक्षा के कारण उसकी प्रतिभा दबती गई. इससे क्षुब्ध होकर वह एक हिंसक गुट में शामिल हो गया. उस गुट का नाम ‘क्रांतिकारी चीता दल ‘ था. जिसे संक्षिप्त में ‘ क्राचीद ‘ कहा जाता था. उस गुट मे कानून विद् ऋषभ , अर्थशास्त्री विश्वास जैसे अनेक लोग थे. विश्वास को पकड़ने के लिए सरकार ने दस लाख का पुरस्कार रखा था.
          ‘ क्राचीद ‘ आर्थिक दृष्टि  से कमजोर था. विश्वास चाहता था कि रुपये ‘ क्राचीद ‘ के काम आयेउसने स्वयं को पकड़वाने के लिए पुलिस को अपना पता दे दिया. साथ ही कहा कि पुरस्कार के रुपये प्रणव को मिले. पर सरकार ने विश्वास को गिरफ्तार तो करवा ली मगर पुरस्कार की राशि प्रणव को देने के बजाय उसकी खोज बीन शुरु कर दी इसकी खबर जैसे ही प्रणव को लगी वह छिपे -छिपे रहने लगा. उसमें उग्रता आ गई थी. उसे जैसे ही विज्ञान भवन में वैज्ञानिको की बैठक होने की सूचना मिली. वह बेल्टबम कमर में बांध कर ‘विज्ञान भवन ‘ में जा पहुंचा और बटन दबा दिया इससे जोरदार धमाके के साथ विस्फोट हुआ . इस विस्फोट से सात वैज्ञानिको के अंग क्षत -विक्षत हो गए. नीलमणी की टांगे और भुजाएं शरीर से अलग हो गयी. प्रणव का शरीर कई टुकड़ों में बंट गया. प्रणव ने दूसरों के तो प्राण लिया पर स्वयं के प्राणों की रक्षा नहीं कर सका. आत्मघाती का भयावह पक्ष यही होता है कि वह दूसरों पर हमला करने से पूर्व स्वयं को मृत समझता है. घायल और बेहोश वैज्ञानिकों को अस्पताल लाया गया. उसमें आकाश भी था. उसके शरीर से छर्रे निकाले गये. रक्त देकर उपचार की व्यवस्था की गई. कई घण्टों बाद उसकी चेतना लौटी.
          चेतनावस्था में आते ही आकाश पीड़ा से छटपटा उठा. चिकित्सकों ने उसे ढाढस बंधाया पर सहानुभूति से उसकी पीड़ा खत्म नहीं होनी थी. उसकी व्याकुलता को देखना सामर्थ्य से बाहर था. यद्यपि आकाश का सतत उपचार चल रहा था पर कोमल स्थल पर चोंट लगने के कारण उसकी पीड़ा ज्यों की त्यों बनी हुई थी. आकाश ‘सेफ्टी लाइफ ‘ को पूरा करना चाहता था इसके लिए वह जीना चाहता था पर असहनीय पीड़ा ने उससे जीने का साहस छीन लिया था. अब वह मृत्यु चाहने लगा था. उसने अपने अधिवक्ता सुमन के द्वारा न्यायालय में ‘ दयामृत्यु ‘ के लिए आवेदन कर दिया. ‘दयामृत्यु ‘ एक जटिल प्रश्न है. विश्व की न्याय पालिका असमंजस में है कि दयामृत्यु दी जाये या नहीं. आवेदन प्रस्तुत होने के बाद शासकीय अभिभाषक बालकृष्ण ने इसका विरोध किया. कहा-न्यायालय को दयामृत्यु की छूट नहीं देनी चाहिए. यदि न्यायालय दयामृत्यु को इजाजत देना शुरु कर दिया तो इसका दुष्परिणाम यह होगा कि चिकित्सक अपनी जिम्मेदारी से पीछे हटेगे. वे असाध्यरोग से ग्रस्त व्यक्तियों और वृद्धों को स्वस्थ करने की जिम्मेंदारी से पीछे हटेगें. व्यक्ति सामान्य से रोग को लेकर बवाल पैदा करेगा और छोटे छोटे रोगेा से मुक्ति पाने दयामृत्यु की मांग करेगा जबकि ऐसे रोगों का उपचार से निदान संभव होगा. आकाश के अधिवक्ता सुमन ने अपना पक्ष रखा. कहा-शासकीय अभिभाषक का तर्क ग्राह्य है लेकिन जिसका जीवन मृत्यु से बदतर हो. भविष्य कष्ट के सागर में गोते खा रहा हो,वह दयामृत्यु पाने का अधिकारी है. जहां तक मेरे पक्षकार आकाश की बात है तो वर्तमान में वह इसी वर्ग में आता है. न्यायालय से निवेदन है कि वह मेरे पक्षकार की स्थिति को देखते हुए उसके आवेदन पर सहानुभूति पूर्वक विचार करने की कृपा करें.
          माननीय न्यायाधीश नागार्जुन ने वकीलों के तर्को को गंभीरता पूर्वक सुना. वे स्वयं आकाश की स्थिति को देखना चाहते थे ताकि निर्णय देने में आसान हो . वे अस्पताल परिसर पर पहुंचे कि एक पीड़ायुक्त चीख से वे ठिठक गये . उन्होंने उस पीड़ायुक्त चीख के संबंध में जानना चाहा तो उन्हें बताया गया कि यह चीख आकाश की है. आकाश की तड़पन और व्याकुलता ने न्यायाधीश को झकझोर कर रख दिया. उन्होंने आकाश के ‘दयामृत्यु ‘ के आवेदन को स्वीकृति दे दी. आवेदन स्वीकृति की चर्चा दावानल की तरह फैली. इसका समाचार चन्द्रहास को मिला. वह बेचैन हो गया. चन्द्रहास ‘ मानव सुरक्षा संघ‘ संस्था से संबन्धित था. यह संस्था ‘मासुस ‘ के नाम से चर्चित था. उसमें भी अनेक प्रतिभावान व्यक्ति शामिल थे. मासुस के सदस्य हिंसा एवं आतंकवाद के विरोधी थे. वे क्राचीद के हिंसक प्रवृत्ति क ी आलोचना करते. उनका मानना था कि व्यक्ति हिंसा करने के बाद अपने मूलउद्देश्य से भटक जाता है. वह समाज का हितैषी बनने के बदले समाज का शत्रु बन जाता है. उसे छिपकर रहना पड़ता है तो वह अपनी विद्या या अनुसंधान को कहीं बता नहीं पाताऔर इस तरह वह अपने हाथों अपनी प्रतिभा को नष्ट कर लेता है. मासुस का कहना था कि क्राचीद अपने कार्यशैली में बदलाव लाकर समाज हितार्थ कार्य का सम्मादन करें. आकााश के द्वारा बनाया जा रहा सेफ्टी लाइफ की जानकारी चन्द्रहास को थी.
          यदि आकाश की मृत्यु हो जाती तो सेफ्टी लाइफ का कार्य अधर में लटक जाता. चन्द्रहास ने ‘मासुस ‘ के सदस्यों की बैठक रख कर कहा कि किसी भी स्थिति में आकाश को जीवित रखना है. इसके लिए चाहे कोई भी कदम उठाना क्यों न पड़े ? इधर न्यायालय ने आकाश को दयामृत्यु देने डा. महादेवन को नियुक्त किया था. डा. महादेवन अस्पताल जाने निकला ही था कि उसका पुत्र सौरभ सामने आ गया. वैसे सौरभ उसका सगा पुत्र नहीं था. एक महिला अस्पताल में आयी. वह गर्भवती थी. उसने सौरभ को जन्म दिया और उसे वहीं छोड़ कर कहीं चली गयी. सौरभ का कोई पालक था नहीं इधर डा. महादेवन की एक भी संतान नहीं थी. उसने सौरभ को अपने पास रख लिया और उस पर पिता का प्यार उड़ेलने लगा. सौरभ ने रुष्ट स्वर में कहा- पापा, आप मुझ पर कभी ध्यान नहीं देते . सदैव मरीजों के पीछे भागते रहते हैं. आपको दूसरों की जान बचाने की ही चिंता रहती है. सौरभ के आरोप से महादेवन विचलित नहीं हुआ. उसने प्यार का हाथ उसके सिर पर फेर कर आगे बढ़ लिया. . . . . । दवाई के दुष्प्रभाव से धंनजय की मृत्यु हो गयी. इससे डा. महादेवन को जनाक्रोश का सामना करना पड़ा. उसे हत्यारा तक कहा गया. महादेवन को मानसिक त्रासदी भोगनी पड़ी. उसे अपमानित भी होना पड़ा मगर उसमें न हीनता आयी और न हताशा आया क्योंकि उसने जो दवाई मरीज को दिया था वह उसके जीवनदान के लिए थी मगर उसका प्रभाव उल्टा पड़ा. आज महादेवन विचलित था उसे ऐसे व्यक्ति को मारना था जिसने न उसका अहित किया था और न उससे किसी प्रकार की शत्रुता थी. डा. महादेवन आकाश के पास पहुंचा. आकाश ने उसे देखा. महादेवन को लगा -आकाश व्यंग्य कर रहा है. कह रहा है- आओ डा. ,आओ. तुम उपचार करके मेरी पीड़ा तो खत्म नहीं कर सकते. हां,अपनी जिम्मेदारी को कायम रखने मुझे मार अवश्य सकते हो. . . . ।
          डा. महादेवन मन ही मन बड़बड़ा उठा- हां-हां,मैं तुम्हें अवश्य मारुंगा. . . . . । डा. महादेवन अपना कार्य प्रारंभ करना चाहता था. वह आकाश के पास गया. उसका साहस जवाब देने लगा. उसने साहस संचय करने का प्रयास किया. मगर वह अपने को असहाय सा महसूस करने लगा. वह मन ही मन बड़बड़ा उठा-यह व्यक्ति मेरा लगता ही क्या है. न्यायालय ने मुझे इसके प्राण हरने का आदेश दिया है. मैं न्यायालय के आदेश का निरादर कर न अपनी नौकरी खोना चाहूंगा और न ही इसे जीवन दान देकर हंसी का पात्र बनाना चाहूंगा. मृत्यु मशीन को आकाश के पास लाया गया. डा. महादेवन को अब बस बटन दबाना था. उसके हाथ बटन के पास पहुंचा कि लगा-‘लकवा मार गया. उसकी बटन दबाने की शक्ति जाती रही. ‘ डा. महादेवन चुपचाप कमरे से बाहर निकल गया. कमरे से बाहर आते ही उसे लगा - सिर से भारी बोझ उतर गया. उसने शान्ति का अनुभव किया. न्यायालय के आदेश नहीं मानने के कारण डा. महादेवन को निलम्बित कर दिया गया . उसके स्थान पर डा. सुरजीत को यह कार्य सम्पादन करने की जिम्मेदारी सौंप दी गई. ‘मासुस ‘ अपने उद्देश्य की सफलता के लिए योजना बनाने लगे. वह वहां से आकाश को हटाकर एक लाश को चुपचाप रख दिया. इस सफलता से मासूस के सदस्य प्रसन्न थे.
          इधर डा. सुरजीत को अपना कार्य संपन्न करना था. वह जब आकाश के पास गया तो उसने पाया वह चुपचाप पड़ा है. डा. सुरजीत ने उसका चेहरा तक नहीं देखा और लाश को आकाश समझ उसके भुजा में एक सुई चुभोयी. इससे खारा जल प्रविष्ठ हुआ. फिर उसने मृत्यु मशीन का बटन दबा दिया कि सुई के द्वारा उसके हृदय में दर्दनाशक प्रशामक द्रव्य प्रवाहित हुआ अंत में घातक पोटेशियम क्लोराइड प्रवेश कर गया. बाद में उसे मृत घोषित कर दिया गया. न्यायालयीन कार्यवाही के अनुसार तो आकाश की मृत्यु हो चुकी थी पर वास्तव में वह जीवित था. उसे तो ‘मासुस ‘ ने पूर्ण सुरक्षा के साथ अपने पास रखा था. मासुस आकाश का उपचार अपनी विधी से करने लगा. उपचार से आकाश स्वस्थ हो गया. वह पुनः ‘ सेफ्टी लाइफ ‘ को पूरा करने जुट गया. एक अवसर ऐसा आया कि उसने सेफ्टी लाइफ को पूर्णरुप देने में सफलता हासिल कर ली. मासुस को समय -धन-बुद्धि का व्यय करना पड़ा था. इसका पुरस्कार यह मिला कि ‘सेफ्टी लाइफ ‘ के निर्माण में उसके योगदान को महत्वपूर्ण माना गया. कर्तव्य के निर्वहन में उदासीनता के आरोप से डा. महादेवन बच नहीं पाया था. उसकी जीविका छीन गई थी. उसे आर्थिक कठिनाइयों से जूझना पड़ रहा था. एक दिन उसे पता चला कि आकाश तो जीवित है. वह आकाश की खोज करने लगा और उसने आकाश को पा ही लिया. उसने आकाश से कहा- तुम यहां छिपे बैठे हो. तुम्हारे कारण मेरी नौकरी गई. लोग मुझे कायर की संज्ञा दे रहे है. तुमने मानवहित के लिए ‘सेफ्टी लाइफ बनाया है. इसे अंधेरे में न रखो. इसे प्रकाश में लाओ और साथ ही मेरी जीविका वापस दिलवाओ. ‘ आकाश को अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करना था. साथ ही डा. महादेवन को न्याय दिलाना था. वह न्यायालय जाने तैयार हो गया. . . ।
          ‘ क्राचीद‘ के सदस्य ऋषभ ने एक पुस्तक लिखी थी. उसका नाम ‘न्याय और अधिकार चाहिए‘ था. उस पुस्तक में ‘ दयामृत्यु‘ पर भी विचार कि या गया था कि किस परिस्थिति में दयामृत्यु को स्वीकृति देनी चाहिए . उसने उक्त पुस्तक को कानूनविदों को पढ़ाया मगर उसे सम्मान न मिलकर उसकी लेखनी को हंसी में उड़ा दिया गया. इससे वह आक्रोशित हो गया और ‘क्राचीद में शामिल हो गया. चूंकि वह ‘क्राचीद ‘ का सदस्य थाउसमें उग्रता कूट कू ट कर भर गयी थी. व्यक्ति वातावरण और संगति के अनुसार व्यवहार करने लगता है अतः ऋषभ अवहेलित हुआ था तोउसमें उग्रता आ ही गयी थी. उसने सोचा-जब मुझे कहीं न्याय नहीं मिला तो क्यों न न्यायालय को ही उड़ा दूं ? ऋषभ ने कमर मे बेल्टबम बांधा और न्यायालय जा पहुंचा. आकाश भी डा. महादेवन के साथ वहां उपस्थित था. ऋषभ ने न्यायालय को उड़ाने बटन दबाया. बार-बार बटन दबाया पर विस्फोट नहीं हुआ. वस्तुतः आकाश के पास सेफ्टी लाइफ थी. उसके कारण बेल्टबम निष्क्रिय हो गया. ऋषभ बेल्टबम पर खींझ गया अचानक उसकी नजर आकाश की ओर गयी. उसने देखा-वह मुस्करा रहा है कार्य की असफलता से वह खीझा तो था ही उल्टा आकाश को मुस्कराते देख उसका क्रोध फनफना उठा. वह आकाश की ओर कीटकीटा कर दौड़ा. आकाश चिल्ला पड़ा- ‘ इसे पकड़ो,इसके पास बेल्ट बम है. ‘ न्यायालय में देखते ही देखते भगदड़ मच गयी.
         ऋषभ प्राण बचाकर भागना चाहा पर वह पकड़ा गया. न्यायालय ने आकाश को जीवित देखा तो अवाक रह गया. न्यायालय में विचार उठा-यह पीड़ित जीवन जी रहा था. यदि इसके आवेदन को न्यायालय द्वारा अमान्य कर दिया जाता तो स्वच्छ न्याय नहीं होता लेकिन इसे दयामृत्यु दी वह भी एक भूल थी क्योंकि यदि यह मर जाता तो मानव कल्याण के लिए जो कार्य इसने किया है वह नहीं हो पाता. न्यायालय ने स्वयं से प्रश्न किया कि उसका निर्णय सही था या गलत कोई तो बताये. . . . ।‘
          न्यायालय दुविधा में था कि ऋषभ ने अपनी पुस्तक न्यायालय को सौंपते हुए कहा-सर,सदा से यही चला आ रहा है. मेरे समान अपराधी पकड़ा जाता है. उस पर न्यायलयीन कार्यवाही होती है और अपराध प्रमाणित होने की स्थिति में उसे दण्ड दे दिया जाता है. चाहे अपराध करने के पीछे कारण कुछ भी क्यों न हो. क्या यह प्रथा चलती ही रहेगी. ‘ न्यायालय ने कहा- नहीं. . नहीं,अब ऐसी कहानी बार-बार नहीं दुहरायी जायेगी. उन्होंने पुस्तक की ओर इंगित करते हुए कहा- ‘ सेफ्टी लाइफ ‘ ने अपनी प्रतिभा का प्रमाण प्रस्तुत कर दिया. अब इसकी योग्यता को कौन नकार सकता है. यदि यह पुस्तक अपने उद्देश्य में सफल रही तो इसका सम्मान होकर रहेगा. . . . . ।

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